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________________ साधु सभा : प्रयत्न करेंगे । पूज्यश्री : गोचरी आने के बाद 'खाने का प्रयत्न करेंगे' ऐसा उत्तर देते हैं ? यहां उत्कण्ठा हो, तड़प हो तो विलम्ब हो भी कैसे ? औषधि विधिपूर्वक लें तो आरोग्य मिलेगा ही । यदि अविधि से लोगे तो आरोग्य होगा वह भी चला जायेगा । इसीलिए यहां विधि को महत्त्व दिया गया है । __ अंजार में डोक्टर यू. पी. देढ़िया, हमारे परिचित थे । वे पूर्व अवस्था में चलती-फिरती होस्पिटल चलाते थे । (मोटर लेकर छोटे गांवो में जाते ।) एक बार उन्होंने अपना स्वयं का अनुभव एक भाई को बताया : 'एक भाई को दिन में तीन बार पुडियें लेने का कहा । तीन दिनों के पश्चात् रोग नहीं मिटने पर पूछा, तब उसने बताया, 'श्रीमान् ! आपने कहा था न कि पुड़िया लेनी हैं । मैंने पुडिया ली । भीतर का दवा का पाउडर फैंक दिया ।' चैत्यवन्दन में हम ऐसा तो नहीं करते न ? प्रभु की भक्ति करने का भाग्य मिले कहां से ? देवचन्द्रजी के कथनानुसार अनन्त पुन्यराशि एकत्रित होने पर प्रभु-भक्ति करने की इच्छा होती है। * संयम में निश्चलता आयेगी तो गुरु के प्रसाद से ही आयेगी, भगवान की भक्ति से ही आयेगी । __ संयम तो लिया परन्तु अब आनन्द नहीं आता । कहां मुझे कुबुद्धि आई कि मैं ने दीक्षा अंगीकार कर ली ? ऐसा विचार करते हो तो सावधान हो जाना । संयम में आनन्द बढ़ता ही है। यदि नहीं बढ़े तो समझ लेना कि विधि में भूल हो गई हैं । 'गर्म पानी पीने से कुष्ठ हो जाता है ।' ऐसी शंका एक कुष्ठ-ग्रस्त साध्वीजी को हुई । ऐसा नहीं होता न ? बडा भारी विघ्न है यह ! जब मैं राजनादगांव में था तब मेरे ही निकटस्थ व्यक्ति मुझे कहते : 'क्या करोगे वहां दीक्षा लेकर ? साधु तो डण्डे-डण्डे लड़ते हैं ।' मैं कहता : 'आप भला तो जग भला ।' (४६ 00000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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