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________________ गुणानुवाद सुना । गुणानुवाद अनेक बार सुना है, परन्तु आज सुनकर हृदय झंकृत हो उठा । पूज्य दादाश्री जितविजयजी म. पर बोलने के लिए मैं अत्यन्त तुच्छ हूं । पूज्य दादाश्री जीतविजयजी म. के गुरुदेव पू. पद्मविजयजी म. हमारे भरूडिया गांव के सत्रा परिवार में से थे । उनका स्वर्गवास हुए ११८ वर्ष हो चुके हैं । अभी तक भरूडिया में पू. पद्मविजयजी म. के पश्चात् दूसरा कोई व्यक्ति इस समुदाय में दीक्षित हुआ हो ऐसा ध्यान नहीं है । पूज्य गुरुदेव ! आप कृपा-वृष्टि करो और कुछ ऐसा करो कि जिससे यह महेणा टूटे । हीरजी प्रेमजी : हमने भले ही पूज्य दादाश्री जीतविजयजी म. को देखे नहीं है, परन्तु सुने अवश्य हैं । हम ओसवालभाई मात्र विष्णु मन्दिरों में जाकर टंकोरी बजाना जानते थे, परन्तु पूज्य गुरुदेव की मीठी नजर पड़ी और हमारे भीतर सुषुप्त जैनत्व जाग उठा । पू. देवेन्द्रसूरिजी, पू. कलापूर्णसूरिजी आदि महात्माओं का आधोई तथा समग्र कच्छ- वागड़ पर अत्यन्त ही उपकार है । पूज्य आचार्यश्री की प्रत्येक आज्ञा आधोई के संघ ने सदा स्वीकृत की है, अभी भी करेगा, ऐसा विश्वास दिलाता हूं । केसरीचन्दजी : महापुरुषों का गुणानुवाद जीवन का परम सौभाग्य है । पूज्य दादाश्री जीतविजयजी म. में जिस प्रकार प्रभु-भक्ति थी, प्रभु के प्रति श्रद्धा थी, वैसी श्रद्धा हमारे हृदय में हो ऐसी प्रार्थना है । नारणभाई त्रेवाडिया के द्वारा गुरु - गुण गीत प्रस्तुत किया गया । (ये नारणभाई त्रेवाडिया अत्यन्त ही उत्तम प्रभु-भक्त, गुरुभक्त एवं कवि थे । आधोई में भूकम्प की दुर्घटना में उनका स्वर्गवास हुआ है ।) मध्यान्ह की वाचना : * जितना भी श्रुतज्ञान आज बचा है, वह हमारे कल्याण के लिए पर्याप्त है । २४ WOOOOOOळ कहे कलापूर्णसूरि- ३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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