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________________ इस प्रसंग पर मैं पूज्य श्री को बिनती करना चाहता हूं, 'हे पूज्य श्री ! आप कहते हैं कि, 'आपके सन्तान इस शासन के मार्ग पर आयें ।' परन्तु मैं कहता हूं कि वे कैसे आ सकते हैं ? आज ९९ प्रतिशत समाज मुंबई में बस रहा है और मुंबई आप पधारते नहीं हैं । हमारी नई पीढ़ी आपकी परम्परा के साधुओं को कैसे पहचानेगी ? मेरी विशेष विनती है कि आप शिष्य परिवार के साथ मुंबई पधारें ।' इस पाट पर मुंबई से मिले हुए २० - २५ साधु बिराजमान हों, ऐसा मैं जीते-जी देखना चाहता हूं । यदि बोलने में कोई अविनय हुई हो तो 'मिच्छामि दुक्कडं' मांगता हूं । खेतशीभाई मेघजी : आज पूज्यश्री की स्वर्गतिथि के अवसर पर चाहते हैं कि उनके गुण हममें आयें । भगवान के प्रति पू. दादाश्री जीतविजयजी म. की श्रद्धा कैसी फली, जो हमने व्याख्यान में सुना ? दृष्टि मिलने के पश्चात् उन्होंने समस्त वागड़ समाज को दृष्टि दी जिसे हम कैसे भूल सकते हैं ? आज प्रथम बार ही मैं यहां आया हूं । ८०० का अनुमान था, परन्तु १४०० जितने आराधक हुए हैं, जिसका उत्तरदायित्व भी है । आराधकों के पास प्राप्त करने के लिए अत्यन्त दौड़धूप हुई है, अभी तक चल रही है । इससे ज्ञात होता है कि पूज्यश्री की निश्रा प्राप्त करने की लोगों की कितनी तमन्ना है ? पूज्य दादाश्री जीतविजयजी म. को जिस प्रकार भगवान शान्तिनाथ के प्रति श्रद्धा थी, उस प्रकार समस्त आराधकों को पूज्य आचार्यश्री के प्रति श्रद्धा है । इसमें हम कुछ भी निमित्तभूत बनें, यह भी हमारा महान् सौभाग्य है । किसी को कोई कटु वचन कहा गया हो तो क्षमा याचना करते हैं । कल प्रातः ९ से १२ बजे तक समस्त समुदायों के महात्माओं का प्रवचन सात चौबीसी धर्मशाला में होगा । आज समस्त आराधक आयंबिल करेंगे, ऐसी विनती है । लगभग एक हजार आयंबिल तो होंगे ही । डुंगरशी शिवजी : पूज्य गीतार्थ गुरुदेव के मुख से आज ( कहे कलापूर्णसूरि ३ 0000 २३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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