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________________ RAPISTANCIDusad आधोई, वि.सं. २०२७ २१-७-२०००, शुक्रवार श्रा. कृष्णा -५ * भगवान की वाणी आगमों में आज भी यथावत् है । भगवान की वाणी अर्थात् टिमटिमाते दीपक ! कलिकाल के घोर अंधकार में इनके बिना चलता नहीं है । * भगवान में अचिन्त्य शक्ति है, वही शक्ति उनके नाम में, मूर्ति में और आगम में भी हैं । आगमों की वाणी अत्यन्त ऊर्जायुक्त है क्योंकि वह भगवान द्वारा कथित है । भगवान के प्रति अनन्य श्रद्धापूर्वक पढ़े तो उनकी शक्ति का अनुभव हुए बिना नहीं रहेगा । सामान्य मनुष्य की वाणी भी प्रभाव डालती है तो भगवान की वाणी क्यों न डाले ? * हरिभद्रसूरिजी प्रारम्भ में ही अपनी अशक्ति व्यक्त करते हुए कहते हैं कि - भगवान की वाणी के सम्पूर्ण अर्थ (गम, पर्याय आदि सहित) कहने में मैं असमर्थ हूं, परन्तु जितने मुझे याद हैं उतने कहूंगा, जो मुझसे अल्प बुद्धिवाले के लिए अवश्य उपयोग में आयेंगे । अधिक बुद्धिमान् व्यक्ति को तो मेरे जैसे की आवश्यकता नहीं है । [कहे कलापूर्णसूरि - ३ 60mmoon a masoma १३]
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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