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________________ कल 'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक डॉक्टर राकेश के मार्फत मिली । मैं उसे मंगवाने के प्रयत्न में था और आ गई । अत्यन्त आनन्द हुआ । पहले दूसरे के मार्फत यहां आई हुई यह पुस्तक मुझे मिली थी और लगभग उसे मैं पूर्ण रूप से पढ़ चुका हूं। अत्यन्त प्रसन्नता हुई है। साधु-समाचारी की बातें और पूज्यश्री के मुंह से प्रवाहित वाणी अत्यन्त प्रभावोत्पादक होती है । मुझे पुस्तक अत्यन्त प्रिय लगी है । (रुबरु) प्रत्यक्ष मिलने जितना आनन्द हुआ है । इस काल में पूज्य पंन्यासजी महाराज के पश्चात् पूज्य आचार्य भगवंत अत्यन्त श्रद्धेय व्यक्ति हैं । आप गणिवरों ने घोर श्रम करके पुस्तक तैयार की है। धन्यवाद - मुनि जयचन्द्रविजय, सूरत आप कृपालु के द्वारा मुझे याद करके भेजी हुई परम पूज्य भगवान कलापूर्णसूरिजी के भावों को प्रस्तुत करती पुस्तक 'कह्यु कलापूर्णसूरिए' मिली । बहुत-बहुत आभार । पुस्तक मिली । अत्यन्त ही आनन्द आया । परमात्म-स्वरूप पूज्यश्री की पुस्तक के लिए अल्पज्ञ मैं कोई भी अभिप्राय दूं यह भगवान कलापूर्णसूरीश्वरजी का अवमूल्यन करने वाली बनेगी ऐसा प्रतीत होता है। जिसे पढ़ते ही आत्मा के भयानक आवेश-आवेग आदि भाग कर शान्त, प्रशान्त, उपशान्त अवस्था (स्व की) प्राप्त कराये ऐसा यह शास्त्र अनेक भव्यात्माओं को आत्म-कल्याणकारी बनेगा ही यह निस्सन्देह बात है। - विमलहंसविजय, बारडोली 'कडं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक की एक प्रति प्राप्त हुई । श्रुतभक्ति की बहुत-बहुत अनुमोदना । - आचार्यश्री कल्याणसागरसूरि, नारणपुरा, अहमदाबाद कहे कलापूर्णसूरि - ३0000000wowonwo000000 ३५९)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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