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________________ अभिप्राय पुस्तक मिली, सुन्दर प्रेरणादायी है । अनेक व्यक्तियों के लिए उपयोगी बनेगी । आपने ऊकाभाई पटेल के साथ भेजी हुई 'कह्युं कलापूर्णसूरिए' नामक पुस्तक की दो प्रतियें परसों रात्रि में प्राप्त हुई हैं । सुखसाता में होंगे । यहां भी देव गुरु की कृपा से सुख -साता है । सभी को वन्दना - सुखशाता कहें । - पद्मसागरसूरि 'डाक जाते आते अधिक समय लगता है । अतः अब पत्र लिखें तो हरिद्वार के पते पर लिखें । कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा तक हम यहां हैं । तत्पश्चात् बर्फ पड़ने लगेगी तब पोस्ट - ओफिस भी बंद हो जायेंगी । उत्तरी ध्रुव में जिस प्रकार छ: महिने दिन और छ: महिने रात होती है, उस प्रकार यहां भी लगभग छः महिने तक जन-जीवन प्रायः बंद रहता है । पशु, पक्षी, मनुष्य सभी यहां से नीचे उतर जाते हैं । कुछ दो-चार योगी एवं सेना के कुछ मनुष्य यहां रहते हैं । ३५८ 'कहा कलापूर्णसूरिने' का बहुमूल्य उपहार अभी ही हाथ में आया । पूज्य श्री की यह वाचना-प्रसादी अनेक आत्माओं को सुलभ करके देने के सम्यक् प्रयास के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद । आचार्य विजयरत्नसुन्दरसूरि जंबूविजय बद्रीनाथ (हिमालय) H 28 28 पुस्तकें भेजने के लिए आभार, अत्यन्त ही सुन्दर हैं । आत्मोपयोगी ऐसी पुस्तकें प्रकाशित करते रहें । आपका कार्य निर्विघ्न सम्पन्न हो, ऐसी प्रार्थना । आचार्य जयशेखरसूरि धारवाड़, हुबली १८७७ कहे कलापूर्णसूरि - ३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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