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________________ भगवान बैठे हैं । राग-द्वेष आदि पशुओं का क्या सामर्थ्य है कि वे वहां आ सकें ? गांव के बाहर सिंह का पुतला रखकर देखो । अन्य पशु उसे देख कर ही भाग जायेंगे । पूज्य नवरत्नसागरसूरिजी : सिंह के पद-चिन्हों को देख कर भी भाग जायेंगे । पूज्यश्री : हम सब तो भगवान के किले में हैं। यहां अशुभ भावों का स्पर्श कहां से होगा ? हम सबको सामर्थ्य योग प्राप्त करना है, परन्तु वह प्राप्त होगा शास्त्र योग के द्वारा और शास्त्र योग प्राप्त होगा इच्छा योग के द्वारा । इस समय तो इच्छा योग आ जाये तो भी बड़ी बात है। अतः आप भगवान को प्रार्थना करें कि प्रभु ! उसके लिए मुझे शक्ति दें । यह पुस्तक अर्थात् मेरे जीवन के लिए 'सर्च लाईट'। नवकार की आराधना के दिनों की वाचना सर्वाधिक तात्त्विक लगी । - साध्वी शान्तरसाश्री इस पुस्तक से मेरा जीवन धन्य हो गया । - साध्वी संयमरसाश्री इस पुस्तक के पठन से मुझ में विनय, वेयावच्च, समर्पणभाव, ज्ञान, ध्यान आदि आयें ऐसी भावना रखती . - साध्वी मुक्तिनिलयाश्री (कहे कलापूर्णसूरि - ३nommonsoommmmmmmmm १८५)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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