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________________ लाकड़िया - पालिताना संघ, वि.सं. २०५६ RRRRRRRRRR १०-८-२०००, गुरुवार सावन शुक्ला-११ * ज्ञान का प्रकाश, श्रद्धा की शक्ति और अन्तर्मुखी दृष्टि बढ़ाने के लिए हम सब इस सिद्धाचल की शीतल छाया में आये हैं । श्री संघ हमसे भारी आशा रखता है । * आज गुरुवार है । गुरु-तत्त्व पर अभी अधिक अनुप्रेक्षा करने की इच्छा होती है । * इस 'ललित विस्तरा' में मुख्य रूप से स्वरूप एवं उपयोग सम्पदा का अद्भूत वर्णन है, जिसे सुनकर भगवान की अचिन्त्य शक्ति आदि का ध्यान आयेगा - यह अतिशयोक्ति नहीं है, वास्तविकता है । नित्य पढ़े, सुनें, रटें तो ही उसका ध्यान आयेगा । सर्व प्रथम पूज्य पं. भद्रंकरविजयजी महाराज ने इस ग्रन्थ के लिए सलाह दी थी । * आत्म-शक्ति कदापि समाप्त नहीं होती । इस समय भी प्रभु की शक्ति कार्य कर ही रही है । सिद्धों का उपकार आज भी चालु ही है, अधिक क्या कहूं ? सिद्ध अधिक उपकार करने के लिए ही वहां गये हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - ३ ( Samata THANK ACA १७३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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