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________________ का अतिक्रमण करने की बात है। लाख रूपयेवाला कोई हजार रूपये छोड़ता नहीं है, परन्तु अतिक्रमण कर लेता है, समझ गये ? आत्मशक्ति का (आत्मवीर्य-जनित) उद्रेक इतना तीव्र होता है कि साधक साधना के अगम्य प्रदेश में कहीं आगे चला जाता है। शास्त्रयोग के पश्चात् सामर्थ्ययोग नहीं आये तो केवलज्ञान नहीं मिलता । वर्तमान समय में भी सामर्थ्ययोग की तनिक झलक मिल सकती है। 'ध्यान-विचार' में आने वाला 'करण' शब्द आत्म-शक्ति के उल्लास का वाचक है । चार से पांच करण की कक्षा योगशास्त्र में देखने को मिलती है, फिर नहीं देखने को मिलती, क्योंकि शब्दों में वह शक्ति नहीं है । 'अपयस्स पयं नत्थि ।' . - आचारांग पालीताना पहुंचने की मुख्य-मुख्य जानकारी आप प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु सम्पूर्ण अनुभव तो चलने से ही मिलेगा । शास्त्र में भी मुख्य-मुख्य बिन्दु ही होते हैं । अनुभव तो हमें ही करना पड़ेगा । शास्त्र केवल दिशा बताता है, चलना तो हमें ही पड़ेगा । ___ 'इक्कोवि नमुक्कारो' में जो एक ही नमस्कार संसार से पार उतार सकता है, ऐसा कहा है, वह इस 'सामर्थ्ययोग' का नमस्कार समझे । इस पुस्तक को पढ़ने से स्व दोष-दर्शन की भावना जगी। - साध्वी विरागपूर्णाश्री [१७२ooooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि-३]
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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