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________________ साक्षात् नेमिनाथ भगवान स्वयं ने भी 'जरा' के निवारणार्थ पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा के स्नात्र जल का उपयोग करने का कहा था । 'मैं बैठा हूं न ? झुका दे मस्तक । तेरा कार्य सिद्ध हो जायेगा ।' नेमिनाथ भगवान ने ऐसा नहीं कहा था । विघ्न निवारण करने का अधिकार केवल शंखेश्वर पार्श्वनाथ का है । * अर्जुन : 'हे कृष्ण ! आप भक्त को किस प्रकार सहायता करते हैं ?' श्री कृष्ण : येमां यथा प्रपद्यन्ते, तांस्तथैव भजाम्यहम् ।' गीता 'जिस प्रकार से मुझे जो स्वीकार करता है, उस प्रकार मैं उसकी सहायता करता हूं ।' मानव, देव, राजा अथवा भगवान जिस प्रकार भक्त स्वीकार करें, उस रीति से उसे सहायता करता हूं । शंखेश्वर पार्श्वनाथ के लिए हमारा दृष्टिकोण कैसा है ? या विश्वास ही नहीं है ? भिखारी तथा उद्योगपति दोनों मन्दिर में गये । दोनों ने एक समान प्रार्थना की, 'प्रभु ! अब तो कार्य करना ही पड़ेगा । पन्द्रह दिनों से प्रार्थना करता हूं ।' मन्दिर में से बाहर निकलने के पश्चात् भिखारी ने भिक्षा मांगनी प्रारम्भ की और वह उद्योगपति गाड़ी में बैठ कर चला गया । भिखारी को पचास रूपये का नोट मिलने पर वह खुश-खुश हो गया सचमुच भगवान ने मेरी बात सुन ली । उस उद्योगपति का माल, जो कोई भी लेता नहीं था, उसे खरीदने वाला मिल गया । पांच लाख रूपयों का लाभ हुआ । दोनों की समान प्रार्थना होते हुए भी एक को पचास रूपये और दूसरे को पांच लाख मिले । भेद भगवान का नहीं है, परन्तु भक्त के मन का है । - प्रभु वही है, परन्तु आप उन्हें किस दृष्टिकोण से स्वीकार करते हैं, यही महत्त्वपूर्ण हैं । अभी जाप पूर्ण हो और कृपावृष्टि होगी ही, ऐसी श्रद्धा होनी चाहिये । पालथी लगाकर कमर सीधी रख कर सब बैठ जायें । WWW १४९ कहे कलापूर्णसूरि ३ -
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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