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________________ करना ही मत । आप गुरुवन्दन - भाष्य पढ़ेंगे तो गुरु की आशाता ध्यान में आयेगी । पूज्य आचार्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : अध्यात्मयोगी पूज्य आचार्यश्री ने अभी प्रवचन में गुरु-तत्त्व की महत्ता बताई । उमास्वातिजी ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र में मोक्ष मार्ग बताया है । पूज्यश्री ने तो संक्षेप में मोक्ष का मार्ग बता दिया । A 'गुरु - बहुमाणो मोक्खो ।' 'पंचसूत्र' की इस पंक्ति के द्वारा बता दिया । गुरु के बिना कोई भगवान प्राप्त नहीं कर सकता । जो गुरु को मानता है वही मुझे मानता है । जो गुरु को नहीं मानता, वह मुझे भी नहीं मानता । ऐसा स्वयं भगवान कहते हैं । इस सिद्धाचल में तो इतने सारे गुरु-पुंगवों के दर्शन से हम सभी निहाल हो गये हैं । कल्पसूत्र में उल्लेख है - 'नयणसहस्सेहिं पेहिञ्जमाणे पेहिज्जमाणे । ' हजारो आंखों में से देखे जाते भगवान । यहां भी हजारों आंखें धन्य हैं जो गुरु- भगवंतों को देख रही रोगों, उपद्रवों को नष्ट करने के लिए इस समय शंखेश्वर पार्श्वनाथ का सामूहिक जाप हो रहा है । नाम लेते ही भगवान आपके समक्ष आयेंगे । अभी ही आप आंखे बंध करें और मैं नाम लूं - 'शंखेश्वर पार्श्वनाथ ।' वे आपको दिखाई देंगे न ? इसीलिए कहा है - 'नाम ग्रहंता आवी मिले, मन भीतर भगवान ।' कोई प्रश्न पूछ सकता है कि यहां आदिनाथ भगवान की निश्रा में शंखेश्वर पार्श्वनाथजी क्यों ? जिस पानी से मूंग चढें, उस पानी से चढा दें । यह कहावत सुनी है न ? विघ्न निवारण हेतु शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान उत्कृष्ट माने गये हैं । १४८ WW ॐ कहे कलापूर्णसूरि - ३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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