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________________ तो समझ लें कि उन भगवान को हमने नाथ के रूप में स्वीकार नहीं किया । भगवान की आज्ञा के बिना एक भी गुण आ नहीं सकता । भगवान का गुणों पर अनन्य स्वामित्व है । मेरी इस बात का खण्डन करके देखो । मेरी सहायता करने के लिए सिद्धर्षि गणि का वह वचन आता है - एक भी शुभ भाव भगवान की कृपा के बिना मिलता नहीं है । शुभ भावों से ही गुण प्राप्त होते हैं । शुभ भाव भगवान की कृपा से प्राप्त होते हैं । इसीलिए कहता हूं कि गुणों पर भगवान का स्वामित्व आज प्रातः वन्दन के समय पच्चक्खाण नहीं दे सका । शंका थी कि आज कदाचित् वाचना नहीं दे सकूँगा, परन्तु भगवान बैठे हैं न ? उन्होंने मुझे तैयार कर दिया । मैं भगवान को कैसे भूलुं ? ठेठ बचपन में मैं भी भगवान को इस प्रकार नहीं जानता था, परन्तु आज जानता हूं। पल-पल भगवान याद आयें, ऐसी भूमिका पर भगवान ने ही पहुंचाया है । ये भगवान मैं कैसे भूल सकता गुरु के द्वारा, पुस्तक के द्वारा, किसी घटना के द्वारा अथवा किसी के भी द्वारा आपके जीवन में गुण आयें तो वे आखिर भगवान के द्वारा ही आते हैं । मुख्य धारा एक ही है। जहां कहीं भी बिखरा हुआ है वह भगवान का ही है । इतना मानने लग जायें तो काम हो जाये । यह पुस्तक पढ़ने से सम्यक्त्व की प्राप्ति हो । ___- साध्वी विरतियशाश्री यह पुस्तक पढ़ने से मेरा रोम-रोम पुलकित हो गया । ओह ! गुरुदेवश्री के जीवन में इतनी पवित्रता? - साध्वी वाचंयमाश्रीश १४४0oooooooooooooonmoot
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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