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________________ अमेरिकनों को आशीर्वाद, बेंगलोर, वि.सं. २०५२ ५-८-२०००, शनिवार सावन शुक्ला - ६ 'मुक्ति के मार्ग में प्रभु के अतिरिक्त कोई सहायक नहीं है ।' इस बात की दृढ प्रतीति ही प्रभु के प्रति अनन्य प्रेम-भाव एवं भक्ति-भाव उत्पन्न कराती है । भगवान मात्र धर्म का प्रतिपादन करके रुक नहीं जाते, परन्तु साधना भी कराते हैं । प्रारम्भ से लेकर ठेठ शैलेशीकरण तक भगवान सहायक बनते हैं । बीज खेत में अपने आप नहीं गिरता, किसान बोता है । धर्म-बीज भी हमारे भीतर भगवान के द्वारा डाला जाता है, क्या यह समझ में आता है ? चतुर्विध संघ के किसी सदस्य के द्वारा ही धर्म का बीज पड़ता है । इस चतुर्विध संघ के स्थापक भगवान हैं । यह तो हमें स्वीकार करना पडेगा न ? अष्ट प्रातिहार्य, चौतीस वाणीगुण आदि धर्म के ही फल हैं । धर्म को भगवान ने सिद्ध किया है । ऐसा सिद्ध किया है कि धर्म उन्हें छोड़कर कहीं जा ही नहीं सके । * क्या धर्म का प्रभाव दिखाई देता है । आजकल कुछ समय तक कोलेरा (हैजा ) का वातावरण चला । १४० 000000000 S ॐ कहे कलापूर्णसूरि - ३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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