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________________ * चाण्डाल का स्पर्श वर्जित गिना जाता है, परन्तु प्रभु के चरणों के स्पर्श के लिए उतावल की जाती है, कारण क्या ? अशुभ स्पर्श का प्रभाव अशुभ होता है और शुभ का शुभ । यह बात इससे स्पष्ट हो जाती है। तांबे को स्वर्ण-रस का स्पर्श होने पर वह स्वर्ण बन जाता है, ऐसा कहते हैं । यह स्पर्श का प्रभाव है। जब तक प्रभु का स्पर्श न हो तब तक हम तांबा हैं। भगवान का स्पर्श तो वेधक-रस है । उनका स्पर्श होते ही अपनी पामर आत्मा परम बन जाती है । अप्रकाशित दीपक प्रकाशित दीपक के स्पर्श के बिना प्रकाशित नहीं बन सकता, उस प्रकार प्रभु के स्पर्श के बिना अपनी आत्मा परम आत्मा नहीं बन सकती । प्रभु के गुण कदाचित् प्राप्त न कर सको, विकसित न कर सको, परन्तु उनके प्रति प्रेम तो बढा सको न ? प्रभु के गुणों का प्रेम ही वेधक रस है, जो आपको स्वर्ण-मण्डित कर देगा । गुरु में भी भगवान की शक्ति कार्य कर रही है। इसीलिए गुरु के चरणों को स्पर्श करने की इतनी महिमा है । वे जहां बैठे हों उस पाट, आसन आदि को कितने भावपूर्वक स्पर्श करते हैं ? वांदणा में क्या है ? 'अहो, कायं-काय-संकासं' के द्वारा गुरु के चरणों की कल्पना कर के उनका भाव से स्पर्श करते हैं । ___ भावपूर्वक स्पर्श करने से बहुमान उत्पन्न होता है । बहुमान गुणों के लिए प्रवेश-द्वार है । (३) विधिपरता : गुरु को वन्दन की आवश्यकता नहीं है, परन्तु यह विधि है । इसके बिना ज्ञान नहीं आता । कितनी ही विधियां है जैसे - मांडली में बैठना, स्थापनाचार्य, गुरुजनों का अनुक्रम, औचित्यपूर्वक आसन आदि बिछाना, विक्षेप का सर्वथा त्याग करना (वाचना आदि का फल प्राप्त करना हो तो विक्षेप का त्याग करना ही पड़ता है, टेढ़े-मेढ़े प्रश्न, टेढ़ी-मेढ़ी दृष्टि आदि विक्षेपकारी परिबल हैं) उपयोग पूर्वक सुनना । यह गुरु के पास ज्ञान प्राप्त करने की विधि है। ऐसा करोगे तो ??? ।
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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