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________________ NRNATARAMA 80000000000000005848 पू. आनंदसागरजी म. ३१-७-२०००, सोमवार श्रा. कृष्णा अमावस : आगम मन्दिर प्राङ्गण पूज्य आचार्यश्री सागरानन्दसूरिजी के गुणानुवाद पूज्य आचार्यश्री सूर्योदयसागरसूरिजी : चाहे जितनी गालियों अथवा पत्थरों की वृष्टि हो परन्तु पूज्य सागरजी की धीरता एवं वीरता गजब की थी । उनका रोम भी नहीं फरकता था । शंखेश्वर में अभयसागरजी की दीक्षा के समय हमने प्रत्यक्ष देखा । चबूतरे पर स्वस्थतापूर्वक बैठे थे । वे पूज्यश्री आज भी मुझे याद आते हैं । * आचार्य पद प्राप्त होने के पश्चात् भी वे अपने लिए आचार्य आनन्दसागरसूरि नहीं लिखते थे । कारण पूछने पर कहते - व्यवहार के लिए आचार्य पदवी स्वीकार करनी पड़ी, परन्तु सचमुच मुझ में आचार्य की योग्यता नहीं है, पात्रता नहीं है । केवल दो ही आगम मन्दिरों में (पालीताणा-सूरत) आचार्य आनन्दसागर लिखा हुआ है। यह भी इस कारण कि भविष्य के इतिहासकार कहीं भूल न करें । * पूज्य सागरजी में सागर जितने गुण थे। वक्ता अनेक हैं, समय सीमित है । अतः मैं अपना वक्तव्य यहीं समाप्त करता हूं। [१०० 0500000 soooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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