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________________ प्लास्टिक के फूल सुन्दर प्रतीत होते है, परन्तु हूंफ वाले नहीं । हूंफ वाले बनने के लिए मैत्रीमय बनना पड़ता है । भक्ति, मैत्री एवं शुद्धि को जन्म देती है । भक्ति से शुद्धि, शुद्धि से सिद्धि प्राप्त हुए बिना नहीं रहती ।। भक्ती की व्याख्या : जिस प्रकार पूज्यश्री ने (पूज्य आचार्य कलापूर्णसूरिजी ने) कहा उस प्रकार प्रभु को पूर्ण रूपेण समर्पण । I am nothing. मैं कुछ नहीं हूं। I have nothing. मेरे पास कुछ नहीं है । उसके बाद ही पूर्ण समर्पण-भाव आता है । I am something. था, तब तक गौतम स्वामी भी समर्पित हो सके नहीं । * एकाग्रता नहीं है यह अखरता है अथवा अहोभाव नहीं है वह अखरता है ? एकाग्रता नहीं है वह अखरता है, परन्तु अहोभाव नहीं है वह अखरता नहीं है। जल के दो गिलास हैं - एक में पत्थर है, दूसरे में पताशा है । हमें पत्थर की तरह केवल मिलना नहीं है, परन्तु पताशे की तरह प्रभु में धुल मिल जाना है । प्रभु सब देने के लिए तैयार हैं । हमारी ओर से मात्र समर्पण की आवश्यकता है । पूज्य मुनिश्री धुरन्धरविजयजी : आज परम शासन-प्रभावक पूज्य आचार्यश्री विजयरामचन्द्रसूरिजी की स्वर्ग-तिथि है। पूज्यश्री के गुणानुवाद महाराष्ट्र भुवन में हुए । कल प्रातः पूज्य सागरजी महाराज के गुणानुवाद आगम-मन्दिर में होंगे । इस पुस्तक को पढ़ने से हमें ऐसी पाप-भिरुता, प्रभु-भक्ति में स्थिरता, गुरु-भक्ति में समर्पितता और धर्म के प्रति दृढता प्राप्त हो, वैसी प्रभु से प्रार्थना करते हैं। - साध्वी जयपूर्णाश्रीश (कहे कलापूर्णसूरि - ३00mmonsomwwwwwwwww ९९)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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