SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के लिए सर्वथा छोटा सा तिनके जैसा कार्य भी हो ! प्रकृति में तो ऐसे परिवर्तन होते ही रहते हैं । धार्मिक दृष्टि से सोचें तो इसमें से अनित्यता का बोधपाठ मिलता हैं - ममता के ताने-बाने तोड़ने का अवसर मिलता है और घर में से मुझे बाहर निकालने वाला तू कौन है ? एसा कहने वाले व्यक्ति को भूकम्प का एक ही झटका बाहर निकाल देता है । क्या यह कम बात है ? ममता को दूर करने के लिए, अनित्यता को आत्मसात् करने के लिए इससे अधिक अन्य कौनसा प्रसंग हो सकता है ? सम्पूर्ण विश्व को एक तंतु से जोड़ देने में निमित्त बननेवाला ऐसा अन्य कौनसा प्रसंग हो सकता है ? भूकम्प के बाद गुजरात-भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में से सहायता का प्रवाह चला, उससे ज्ञात होता हैं कि आज भी मानवता नष्ट नहीं हुई । आज भी मनुष्य के हृदय में करुणा धड़कती है । अकाल, आंधी-तूफान एवं भूकम्प के प्रहारों से जर्जर बनने के बजाय खुमारी के साथ चलती कच्छी प्रजा को देखकर किसी को भी लगे कि ऐसी खुमारी होगी तो बर्बाद हो चुका कच्छ अल्प समय में ही बैठा हो जायेगा । कच्छी 'माडू' इस बर्बादी को खुमारी में, इस अभिशाप को वरदान में बदल सके ऐसे सत्त्व के रूप में अडिग खड़ा है । 'नवसर्जन के पूर्व विध्वंस भी कभी कभी आवश्यक होता है ।' ऐसा किसी ने कहा है जो याद रखने योग्य है । शारीरिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक सभी दृष्टियों से बर्बाद हो चुके मनुष्य को आज बैठा करने की आवश्यकता है, उसके अन्तर में भगवान एवं जीवन के प्रति भक्ति एवं कृतज्ञता उत्पन्न करने की आवश्यकता है । मानसिक रूप से भग्न हुए मनुष्यों के सन्तप्त हृदय में ऐसी पुस्तकें अवश्य ही आश्वासन के अमृत का सिंचन करेंगी।
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy