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________________ त्याचEGGGLELLLLLL चचचचचचचचमाजजजजजजज544555 ३४ वर्ष पुराना तीर्थ के समान जिनालय भी पत्थरों के ढेर के रूप में परिवर्तित हो गया । मनफरा के ४५० वर्ष के इतिहास में गांव की पूर्णरूपेण ध्वस्तता तो प्रथम बार ही हुई । यद्यपि धरती- कम्प का प्रदेश होने से कच्छ में प्रायः धरतीकम्प होते ही रहते हैं। ऐसा ही भारी भूकम्प सन् १८१९ की १९वी जून को आया था, जिसके कारण सिन्धु नदी का प्रवाह कच्छ में आना सदा के लिए बंध हो गया । कच्छ सदा के लिए वीरान बन गया । 'कच्छड़ो बारे मास' की उक्ति केवल उक्ति ही रह गई । वास्तविकता सर्वथा विपरीत हो गई । उस धरतीकम्प से पश्चिम कच्छ में अधिक हानि हुई होगी, पूर्व कच्छ (वागड़) बच गया होगा, ऐसा ४५० वर्ष पुरानी जागीर एवं ८०० वर्ष प्राचीन भद्रेश्वर के जिनालय को देखने से प्रतीत होता है। उससे पूर्व वि. संवत् १२५६ में भयंकर भूकम्प आया था, जिसके कारण नारायण सरोवर का मीठा पानी खारा हो गया था । हजार वर्षों में दो-तीन बार आते एसे भूकम्पों से पहले की अपेक्षा भी इस बार अत्यन्त ही विनाश हुआ है, क्योंकि अधिक मंजिलो युक्त मकानों के निर्माण के पश्चात् ऐसा हृदय-विदारक भूकम्प भारत में शायद प्रथमबार आया है । कच्छ के बाद विश्वभर में इण्डोनेशिया, चीन, जापान, अफघानिस्तान, अमेरिका, असम आदि स्थानों पर श्रेणिबद्ध आये भूकम्प के झटकों ने विश्वभर के लोगों को भूकम्प के सम्बन्ध में सोचने को विवश कर दिये हैं। डेढ़-दो हजार की जनसंख्या वाले छोटे से मनफरा गांव में भूकम्प से मारे गये लगभग १९० मनुष्यों में ६० तो जैन थे । घायल हो चुके तो अलग । दो-पांच हजार वर्ष पहले के प्राचीन मन्दिर क्यों आज नहीं दिखाई देते ? नदी क्यों लुप्त हो जाती हैं ? नगर क्यों ध्वस्त हो जाते हैं ? नदियों के प्रवाह क्यों बदल जाते हैं ? लोग क्यों स्थान बदल देते हैं ? 'मोंए जो डेरो' जैसे टीबे क्यों बन गये? ऐसे अनेक प्रश्नों का उत्तर भूकम्प है । आदमी के लिए बड़ा गिना जानेवाला यह भूकम्प प्रकृति चाचाचाचाचाचाचचचचचाचाचाचाचाLLLLLLLLLLLLLLLEELHI 님님님님님님님 관리
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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