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________________ PARIHARASHMISension पालिताना, वि.सं. २०५६ २९-७-२०००, शनिवार श्रा. कृष्णा -१३ भगवान के निर्वाण के पश्चात् उनकी ओर से उनका कार्य धर्म करता है। आदिनाथ भगवान का तो चौरासी लाख पूर्व का ही आयुष्य ! उसमें भी दीक्षा पर्याय तो केवल एक लाख पूर्व ! परन्तु उनके द्वारा स्थापित तीर्थ का आयुष्य पचास लाख करोड़ सागरोपम ! तब तक तीर्थ सतत उपकार करता ही रहता है। भगवान का नाम तो उससे भी अधिक समय तक उपकार करता रहेगा। __ भगवान के विशेष नाम (आदिनाथ) बदलते रहते हैं, परन्तु सामान्य नाम (अरिहंत) नहीं बदलता । नामाकृतिद्रव्यभावैः - श्लोकों में सामान्य अरिहंतो की स्तुति हैं, विशेष की नहीं । __ भगवान आदिनाथ से लगाकर सभी तीर्थंकर अभी सिद्ध हैं, तो फिर 'अरिहंते कित्तइस्सं ।' क्यों लिखा ? । इस समय भी वे द्रव्य अरिहंत हैं ही और हमें अरिहंत के रूप में उनका ध्यान करना है । * क्षायिक भाव के गुण सिद्ध अवस्था में लुप्त नहीं होते । परार्थव्यसनिता गुण भी सिद्ध अवस्था में लुप्त नहीं होता । इस ८४oooooooooooooooooon कहे
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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