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________________ इस गिरिराज की ऊर्जा इतनी पवित्र है, इतनी प्रबल है कि इसे देखने मात्र से भी अपनी चेतना ऊर्वीकरण को प्राप्त हो । जहां जहां से यह गिरिराज दिखाई देता है, वहां वहां सर्वत्र पवित्र ऊर्जा फेंकता रहता है । गुरुत्वाकर्षण का बल तो नीचे खींचता है, परन्तु यहां प्रभु की कृपा तो भक्तों को ऊपर खींच रही है । ग्रेविटेशन से ग्रेस (कृपा) बलवान है । यह गिरिराज हम सब पर निरन्तर ऊर्जा बरसाता ही रहा है । मात्र हमको खाली होने की आवश्यकता है । हमारे खाली होते ही ऊर्जा भराने लगेगी । यहां सभी समुदायों के महात्मा एकत्रित हुए हैं। देखो, वातावरण भी कितना अनुकूल है ? मध्यान्ह का समय होते हुए भी न तो धूप है, न वर्षा । बादलों के पीछे छिपकर मानो सूर्य यह सब देख रहा है। किसी आचार्य ने इनकार किया हो और कोई फोटोग्राफर छिप कर 'शूटिंग' करता हो, उस प्रकार सूर्य मानो बादलों के पर्दे के पीछे छिपकर 'शूटिंग' कर रहा हो । ऐसे परम पवित्र वातावरण में हम सब एकत्रित हुए हैं तो ध्यान रहे - यहां भक्त-कथा (भोजन-कथा) नहीं करनी है, परन्तु भक्त (प्रभु-भक्त) कथा करनी है। भोजन में नहीं भजन में तन्मय होना है । प्रभु के परम भक्त (पू. आचार्यश्री कलापूर्णसूरिजी) यहां उपस्थित हैं। प्रभु की भक्ति, गीतों से अभिव्यक्त करने वाले आचार्यश्री जिनचन्द्रसागरसूरिजी, श्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी (जिन्हों ने मुंबई जैसे महानगर में करोड़ो नवकार गिनवाये । यहां एक अरब नवकार क्यों न गिनायें ?) उस ओर बैठे है । इस ओर भक्ति की व्याख्या करने वाले पूज्य यशोविजयसूरिजी बैठे हैं । मैं तो व्यर्थ ही बीच में टपक पड़ा हूं। (प्रतिदिन दस माला गिनने की प्रतिज्ञा दी गई ।) [कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000000000000 ५०५)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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