SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 524
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पू. आचार्यश्री विजय जगवल्लभसूरिजी (चातुर्मास - दादावाडी) अरिहंत तुल्य देव, शाश्वत गिरि तुल्य तीर्थ और नवकार तुल्य मन्त्र... यह सब प्राप्त करके हम निष्क्रिय कब तक रहेंगे? निष्क्रियता छोड़कर सक्रिय बनना है। केवल सक्रिय बनने से भी कार्य नहीं होगा। सक्रिय बनना है। (सक्रिय अर्थात् शुभ क्रियावाला) अन्त में अक्रिय बनकर सिद्धशिला पर अनन्त सिद्धों के साथ मिल जाना है। पूज्य आचार्यश्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी (चातुर्मास - पन्नारूपा) इस गिरिराज के प्रभाव का क्या वर्णन करें ? पांच वर्ष पूर्व यहां जंबूद्वीप में हमारा चातुर्मास था, तब यहां आये हुए हिन्दु संन्यासियों को हमने पूछा था, "आप यहां किस लिये आये हैं ? आप तो दत्तात्रेय को मानते हैं । उनका स्थान तो गिरनार पर है ।" "गुरुदेव ! इस क्षेत्र के प्रभाव की आपको क्या बात करें ? गिरनार पर जो सिद्धि प्राप्त करने में ६ महिने लगते हैं, यहां पर वह सिद्धि छः दिनों में प्राप्त हो जाती है ।" आज भी इस गिरिराज पर अदृश्य गुफायें हैं । हमें गुफायें खोजने की आवश्यकता नहीं है । समस्त गिरिराज ही हमारे लिए पवित्र हैं। पूज्य मुनिश्री धुरन्धरविजयजी महाराज (चातुर्मास - सर्वत्र) यहां आने का क्या प्रयोजन ? जिन दादा ने हमें बुलाया है, वे दादा प्रयोजन जानें । दादा यजमान हैं । हम सब अतिथि हैं । उत्तरदायित्व यजमान का होता है, अतिथि को क्या ? एक आत्मा भी जहां समस्त कर्मों का क्षय कर के मोक्ष में जाती है वहां का क्षेत्र सिद्धात्मा द्वारा छोड़े गये तेजस शरीर के कारण परम पावन बन जाये, तो जहां अनन्तकाल से अनन्त अनन्त आत्मा समस्त कर्मों का क्षय करके सिद्ध हो चुके हों, वह क्षेत्र कितना पवित्र होगा ? कितना चार्ज किया हुआ फील्ड (क्षेत्र) होगा, उसकी आप तनिक कल्पना तो करें । (५०४ 0wwwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy