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________________ पूज्य पंन्यासजी के पास तीन वर्षों तक रहना हुआ । बहुत जानने को मिला । * विनय-गुण उपाध्याय में सिद्ध हुआ होता है । पू. हरिभद्रसूरिजी का कथन है कि जिन्हें जो गुण सिद्ध हो चुका हो, उनकी सेवा से, उनके नमस्कार से भी हमें वह गुण प्राप्त हो सकता * उपाध्याय भगवन् की शिक्षण-शक्ति इतनी प्रबल होती है कि पत्थर तुल्य मूर्ख शिष्य में भी ज्ञान के अंकुर उगा सकते "मूरख शिष्य निपाई जे प्रभु, पहाण ने पल्लव आणे ।" * उपाध्याय राजकुमार हैं, भावी राजा है; अर्थात् भावी आचार्य हैं । उपाध्याय की वाणी मधुर एवं शीतल होती है। जब हम धूप से संतप्त हों, उष्णता से संतप्त हों तब चन्दन प्राप्त हो जाये तो? आज जैसा चन्दन नहीं, परन्तु बावना चन्दन मिले तो ? 'बावना चन्दन' अर्थात् बावन मन उबलते तेल में चन्दन का एक छोटा टुकडा डाला जाये तो भी वह तेल शीतल बन जाता है । इसीलिए यह 'बावना चन्दन' कहलाता है। उसी प्रकार से उपाध्याय संसार के ताप से परितप्त - जीवों को ऐसी मधुर वाणी से भिगो देते हैं कि उसके सभी अहित-ताप नष्ट हो जाते हैं । प्रश्न - तप में स्वाध्याय आने पर भी 'तप सज्झाये रत सदा' ऐसा क्यों लिखा ? उत्तर - स्वाध्याय की प्रमुखता बताने के लिए । स्वाध्याय उपाध्याय का सांस होता है । * सूत्र अधूरा छोड दें तो पार नहीं पहुंच सकते । उपाध्याय भगवन् पार पहुंचे हुए होते हैं । इसीलिए वे 'पारग' कहलाते हैं। तदुपरान्त उसे धारण करने वाले वे 'धारग' भी हैं । जो पारगधारग बनता है वही ध्याता बनता है । पू. उपा. यशोविजयजी ने उपाध्याय का यह अर्थ भी किया उप = समीप में आ = चारों ओर से (१५२ 80mmooooooooooom कहे कलापूर्णसूरि - २
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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