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________________ वाचना आदि के द्वारा विनियोग करे । विनियोग करने की जिसमें शक्ति हो, वह अन्य सब छोड़कर वही काम करता है । सामाचारी प्रकरण में पू. उपाध्यायजी यशोविजयजी ने लिखा है कि पानी, गोचरी आदि के कार्य दूसरे करें, विनियोग का कार्य विशिष्ट बुद्धिमान संभाले । इसीलिए विनियोग के लिए इन्कार करने वाले भद्रबाहुस्वामी को श्री संघ ने आग्रह करके समझाया था । आप स्वयं ही शिक्षित हों, फिर पण्डित आदि की क्या आवश्यकता पडेगी ? क्या आप स्वयं नहीं पढ़ा सकते ? युवा साध्वी को युवा पण्डित के पास भेजने में जोखिम भी है, इसका ध्यान रखना । * अरिहंतों को नमस्कार मार्ग पाने के लिए । सिद्धों को नमस्कार अविनाशी पद प्राप्त करने के लिए । आचार्यों को नमस्कार आचार में निष्णात बनने के लिए । उपाध्यायों को नमस्कार विनय के लिए अथवा विनियोग शक्ति प्राप्त करने के लिए, और साधु को नमस्कार सहायता गुण प्राप्त करने के लिए है । हमने इतने नमस्कार किये, हमने कितने गुण प्राप्त किये ? कितने गुण प्राप्त करने की हममें उत्कण्ठा उत्पन्न हुई ? ___* ये नियुक्ति के पदार्थ हैं । उपयोगपूर्वक, पडिलेहण करते हुए या इरियावहियं इत्यादि करते हुए आज तक अनन्त जीव मोक्ष में गये हैं । उपाध्याय में विद्यमान अन्य गुण मिलें या न मिलें, एक विनय गुण मिल जाये तो भी कार्य हो जाये । हमारी चल रही वाचना (चंदाविज्झय पयन्ना पर की) में विनय ही प्रमुख है । पांच पदों के वर्णन के बाद यही वाचना चलेगी । * पू.पं. भद्रंकरविजयजी म. दों घंटो में कितना ही बोल जाते थे । प्रारम्भ में मैं लिखने का प्रयत्न करता । मैं लिखता उससे पूर्व तो वे कहीं के कहीं पहुंच जाते । फिर सोचा, लिखने से काम नहीं चलेगा । उन्हें आदरपूर्वक सुनें । उनके प्रति विकसित आदर से भी कार्य हो जायेगा । कहे कलापूर्णसूरि - २00mmoooooooooooooo00 १५१)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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