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________________ प्रथम अध्याय ४६ अनुवाद। हे कृष्ण ! अधर्मका प्रादुर्भाव होनेसे कुलस्त्रियां दूषिता होवेंगी हे वाष्र्णेय ! स्त्रियोंके दुष्टा होनेसे वर्णसंकर उत्पन्न होवेंगे ॥ ४०॥ __ व्याख्या। इस प्रकार अधर्म अर्थात् विपर्याय होनेसे कुलसी दूषित होगी। जिसके गर्भ सन्तान उत्पत्ति होती है, उसीको स्त्री कहते हैं। चैतन्य-संयोगसे भीतर और बाहरकी इन्द्रिय समूह सुख, दुःख, वासना, वैराग्य, राग, द्वष प्रभृति विविध वृत्तियां उत्पन्न करती हैं। इसीलिये ये शरीर और इन्द्रिय सब ही स्त्री हैं। ये स्त्री सकल दूषिता होवेगी अर्थात् शरीर व्याधि ग्रस्त होवेगा। और व्याधि-प्रस्त होनेसे ही वर्णदोष अर्थात् शरीरका रूप-लावण्यादि नष्ट होवेगा तथा शारीरिक यन्त्रादियों का काम करनेवाली शक्ति भी बदल जावेगी स्व-स्वरूपमें नहीं रहेंगी ॥ ४० ॥ संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च। पतन्ति पितरोह्यषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥४१॥ अन्वयः। संकरः कुलघ्नानां कुलस्य च नरकाय एव (भवति ), एषां (कुलनाना) पितरः लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ( सन्तः नरके ) पतन्ति हि ॥ ४१ ।। अनुवाद। वर्णसंकर कुलनाशकोंके तथा कुलके नरकके निमित्त होवेगा; इन लोगोंके पितगण लुप्तपिण्डोदक हो करके निश्चय ( नरकमें ) पतित होवेंगे ॥४१॥ व्याख्या। व्याधिवाले शरीरके मनोभावमें ब्रह्मज्योति प्रकाश पा ही नहीं सकता; सर्वदा दुश्चिन्ता, मन्द दिशामें रति मति है इसलिये दश दिशामें शरीरका क्षय होता रहता है; सुस्थ अवस्थामें क्रिया करते करते अनुभवके (अणु होनेके ) समय जिन सब महापुरुषोंके साथ साक्षात् होता है, जो ब्रह्मज्योति ( पिण्ड) दर्शन होता है तथा सहस्रारसे जो सुधा ( उदक) क्षरण होकर सकलकी पुष्टि साधन करता है, वह लोप हो जाता है, ठीक रास्तेमें प्राणायाम (क्रिया) होती ही नहीं, इसलिये अनुभव नष्ट होता है। इस अनुभवके -४
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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