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________________ २४ श्रीमद्भगवद्गीता साधन क्रमसे यहाँसे दीर्घ घण्टा निनादवत् एक शब्द उठता है, उसीका नाम पौण्ड्र-शंखध्वनि, अहंकार वृत्ति वा सास्मिता सम्प्रज्ञात समाधि अवस्था है। ___ "महाशंख"-"नृललाटास्थिखण्डेन रचिता जपमालिका। महाशंखमयी ज्ञया महाविद्या सुसिद्धिदा ॥” (नोलतन्त्रम् )। अर्थात् आज्ञाचक्रके ऊपर "दशांगुल” स्थानमें ( कपालके अस्थिखण्डके नीचे ही, माथाके विउके बाहरमें ) ५१ एकावन छिद्रयुक्त अति कोमल एक खण्ड अस्थि है; उसीको महाशंख कहते हैं। उसके ठीक बीचके छिद्रको सुमेरु कहते हैं। शरीरका समस्त स्थान ही आहत है, केवल वह दांगुल परिमित स्थान ही अनाहत है। साधनाक्रममें वायु जब वह सुमेरु भेद करके सहस्रारमें जाती है, तबही दीर्वधण्टा-निनादवत् अकम्पन महाशंख-ध्वनि सुनने में आती है; वही भोमकी शंखध्वनि है। 'युधिष्ठिर"-( युद्ध करके जिसको कोई हटा नहीं सकता )= आकाश-तत्व। आकाश सदा काल स्थिर है; मट्टी-जल-तेज -वायुको प्रबल ताड़नासे भी आकाशमें किसी प्रकारकी चंचलता नहीं आतो; इसीलिये आकाश-तत्वका नाम युधिष्ठिर है। इनका विशुद्ध चक्र है; साधनकम में इस चक्र से मे -गर्जन-शब्दवत् शब्द उठता है; इसीको अनंतविजय-शंखध्वनि कहते हैं, क्योंकि इस शब्दको दूसरा कोई शब्द अतिक्रम करं नहीं सकता। इस शब्दमें मन मिला देनेसे सर्ववृत्तिशून्य असम्प्रज्ञात समाधि अवस्था आती है। ___ "नकुल" =रसतत्व। जितने प्रकारका रस है, भोग करके उसका शेष कोई कर नहीं सकता, अर्थात् भोगसे रसका पार (सीमा) मिलती नहीं; इस कारण रसतत्वका नाम नकुल है। इनका स्थान लिङ्गमूलस्थ स्वाधिष्ठान चक्र है। साधन क्रममें यहाँसे वेणुशब्दवत् शब्द उठता है; जिसका नाम सुघोष शंख ध्वनि है, यह निश्चयात्मिकता वृत्ति वा सविचार सन्प्रज्ञात समाधि अवस्था है।
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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