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________________ प्रथम अध्याय २३ अनुवाद । ह्रषीकेशने पांचजन्य शङ्ख, धनंजयने देवदत्त शङ्ख, भीमका वृकोदरने पौण्ड्र नामक महाशङ्ख, कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिरने अनन्तविजय शङ्ख, नकुलने । सुघोष और सहदेवने मणिपुष्पक नामक शङ्ख बजाया। हे महाराज ! महाधनुर्धर काशीराज, महारथ शिखण्डो, धृष्टद्युम्न, विराट, अपराजित सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदेयगण ओर महाबाहु सुभद्रातनय प्रभृति वीरोंने पृथक् पृथक् शंख बजाये ॥ १५ ॥ १६ ॥ १७ ॥ १८ ॥ व्याख्या। "हृषीकेशः" -द्वषोका=इन्द्रिय समूह, ईश= नियन्ता; जो इन्द्रियोंके नियन्ता हैं, जिसके तेजसे इन्द्रिय समूह अपना अपना काम काज करती हैं, वही ह्रषीकेश (श्रीकृष्ण) कूटस्थ-चैतन्य हैं, इनका स्थान आज्ञाचक्र है। मूलाधारादि पांच चकसे उठे हुये पांच स्वर एक साथ मिल करके आज्ञाचक्रके भीतरसे अनुभवमें आती है, इसलिये श्रीकृष्णके शंखको पांचजन्य कहते हैं। “धनञ्जय” –धन-विभूति (जन्म, मृत्यु, सुख, दुःख, क्षुधा, तृष्णा ), जय = जय करना; अर्थात् विभूति विजयी ही धनंजय पदवाच्य है। तेजसे ही क्रिया शक्तिका विकाश होता है, वायु भी तेजसे ही बहती रहती है; अतएव जो कुछ शक्तिका प्रकाश है, वह तेज द्वारा ही है, इसलिये तेजतत्वका नाम धनंजय है। इनका स्थान मणिपुर चक्र है; वहां यह वैश्वानर नामसे जीवकी जीवनी शक्ति (अन्न-पचनरस रूप अमृत) प्रदान करते हैं। यह वैश्वानर देव ही सब देवताके मुखस्वरूप हैं; इसीलिये साधनक्रमसे उस मणिपुर चक्रसे जो वीणा शब्दवत् शब्द उठता है, उसका नाम देवदत्तशंख ध्वनि है, अनुभवात्मिका वृत्ति वा सानन्द सम्प्रज्ञात समाधि अवस्था है। . ___ "वृकोदर"- ( वृक=अग्नि, उदर = पेट; वृक नामा अग्निके पेटमें रहनेके कारण भीमका नाम वृकोदर है )-वायुतत्व । अग्नि वायुसे ही उत्पन्न हो फिर वायुमें ही लयको प्राप्त होती है, इसीलिये कहा जाता है कि वायुके भीतर अग्नि है। इसी कारणवश वायुतत्वको वृकोदर कहा जाता है। वायुका स्थान हृदयस्थ अनाहत चक्र है ।
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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