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________________ प्रथम अध्याय व्याख्या। द्रोण संस्कारज बुद्धि होनेके कारण द्विज हैं-"जन्मना जायते शुद्रः संस्काराद्विज उच्यते । वेदपाठी भवेद्विप्रो ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः॥" ब्राह्मण होकर चतुर्वेद अवगत रहने के कारण तथा क्षत्रिय वृत्ति अवलम्बन कर धनुर्वेदाभिज्ञ होनेसे द्रोणका उत्तमत्व है। बुद्धि ब्रह्मानन्दका भोग भी करती है, पुनः संसार बन्धनमें पड़ कर अपनापराया समझनेमें इष्ट की रक्षा और अनिष्ट का नाश करनेके लिये प्रस्तुत रहती है, इसी कारणसे बुद्धिकी उत्तमता है ॥७॥ भवान् भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितियः। अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिजयद्रथः ॥ ८॥ अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः । नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥६॥ अन्वयः। भवान् (द्रोणः ), भीष्मश्च, कर्णश्च, समितिजयः ( संग्रामजयी) कृपश्च, अश्वत्थामा, विकर्णश्च, सौमदत्तिः (सोमदत्तस्व पुत्रः भूरिश्रवाः ), जयद्रथः, अन्ये च बहवः शूराः, सर्वे मदर्थेत्यक्तजीविताः ( मत्प्रयोजनार्थ जीवितं त्यक्त अध्यवसिताः ) नानाशस्त्रप्रहरणाः ( नानाविध शस्त्रप्रहरणक्षमाः) युद्धविशारदाः (युद्ध निपुणाः ) ॥ ८॥९॥ अनुवाद । आप, भीष्म, कर्ण, समरविजयो कृप, अश्वत्थामा, विकर्ण, सौमदत्ति, जयद्रथ तथा और भी दूसरे दूसरे बहुत वोर हैं, जो सब मेरे लिये प्राण त्याग करने को तैयार है, वह सभी नानाप्रकार अस्त्र शस्त्र धारो और युद्ध में निपुण हैं ॥१९॥ व्याख्या। इन सब नामों का आध्यात्मिक अर्थ है-(१) भवान् द्रोण। दो चक्षु रहने से भी जिनकी दृष्टि एक चक्षु में है, जो एक ओर की जगह युगपत् दोनों ओर देख नहीं सकते, जैसे काक। संस्कार जनित बुद्धि । (सर्वतोमुखी होने पर भी एक ओर लक्ष्य रखनेसे यह बुद्धि निर्मल नहीं है। जो बुद्धि केवल ब्रह्ममुख में प्रेरण करती है, वही निर्मल है। इसलिये पाण्डु ही निर्मल बुद्धि है, क्योंकि
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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