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________________ श्रीमद्भगवद्गीता व्याख्या। इन सब नामोंका आध्यात्मिक अर्थ है(१) युयुधाम= श्रद्धा। यह अकेले हैं, परन्तु अनन्त विपक्षसैन्यके साथ युद्ध करनेकी क्षमता रखते हैं। (२) . विराट=समाधि । (विविगत, राट - राज्य ); जो अपना राज्य दूसरेके हाथमें देकर सदा अलग रहते हैं, वही विराट हैं । (३) द्र पद = (द्र =द्र त, पद = गमने) अन्तर्यामीत्व शक्ति, वैद्य तिक शक्ति वा तीव्र घन वेग। (४) धृष्टकेतु =यम। धृष्टानि संयतानि, केतनानि स्थानानि यस्य यस्य सः। जिस अवस्थामें स्थान समूह अर्थात् छात्रों चक्रकी क्रियायें ही संयत होती हैं। (५) चेकितान स्मृति । चिकि शब्दसे झिल्ली, तान शब्दसे स्वर; यह चिकिका पुत्र चेकि अर्थात् क्षीण किंमिंट स्वर है, जो साधना करते करते अनाहत नादके उठनेसे पहिले साधकों को सुनाई देता है। बहुत ही बालक साधक भी इसको जानते हैं। (६) काशीराज-प्रज्ञा, श्रेष्ठ प्रकाश शक्ति । (७) पुरुजित्-प्रत्याहार, सामान्य विश्राम। (८) कुन्तीभोज-श्रासन । कुन् =कर्षणे। (ह) शैब्य =नियम। कल्याणदायिनी शक्ति। (१०) युधामन्यु-प्राणायाम। युद्ध सुनते ही मात्र जिनके क्रोध का उदय होता है। (११) उत्तमौजा वीर्य। (१२) सौभद्र=संयम। धारणा, ध्यान और समाधि का एकत्र समावेश। (१३) द्रौपदेय =पंचबिन्दु। पंचीकृत पंचमहाभूतों के विकार ॥ ४ ॥५॥६॥ ' अस्माकन्तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। ... नायका मम संन्यस्य संज्ञार्थ तान् ब्रवीमिते ॥७॥ अन्धयः। हे द्विजोत्तम। तु अस्माकम ये विशिष्टाः मम सैन्यस्य नायकाः तान् निषोध; ते संज्ञार्थं तान् ब्रवीमि ॥७॥ अनुबाद। हे द्विजोत्तम ! हम लोगों में जो सब प्रधान तथा हमारा सन्य के नायकान सबको मालूम कीजिये ; आपके अषगति के लिये उन सबका नाम कहता हूँ॥७॥ HHATHREn -TTA
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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