SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवतरणिका (२) 'ज्ञान', 'विज्ञान' व 'अज्ञान'। आत्मज्ञानका नाम 'ज्ञान' है और प्रत्येक तत्त्वके पृथक् पृथक् ज्ञानका नाम 'विज्ञान' है। बहुतेरे टीकाकार लोग विज्ञानके अर्थमें विगतज्ञान अर्थात् ज्ञानके अतीत अवस्था 'असम्प्रज्ञात समाधि' को बतलाये हैं, परन्तु इस योगशास्त्रीय व्याख्या में उस अर्थको नहीं लिया गया। तत्त्वोंके विशेष ज्ञान इस अर्थमें ही विज्ञान शब्दका व्यवहार हुआ है। टीकाकार लोग विज्ञान शब्दको जिस अर्थमें व्यवहार किये हैं, इस व्याख्यामें 'अज्ञान' शब्द को उसी अर्थमें व्यवहार किया गया है। इस कारण प्रवृत्ति-निवृत्ति भेदसे अज्ञानका दो अर्थ होता है। जीव माथाके वशसे विषयवासनामें लिपटके संसार-मोहसे मोहित और आत्मविस्मृत होकर जो "मेरा मेरा" करके भ्रमित होता है, वही प्रवृत्तिमार्गका "अज्ञान" है। और लययोगसे अकर्ममें उपनीत होनेके बाद जो वृत्ति-विस्मरणअवस्था आती है, जब अपनेको भी भूल जाना होता है, “मैं” कहने को भी कोई नहीं रहता है, वही निवृत्तिमार्गका "अज्ञान" है। उसी अज्ञानको "असम्प्रज्ञात समाधि” कहते हैं। . (३) "धर्म" व "धर्म"। जिस शक्तिको अवलम्बन करके इस विश्वको सृष्टि-स्थिति-लय क्रिया सम्पन्न होती है, उसीको धर्म कहते हैं; वही सत्य स्वरूप है। इस सत्यमें मिभ्याका आरोप होनेसे ही प्रवृत्तिमार्गका अधर्म होता है, इस अधर्मको पाप कहते हैं; इसलिये ज्यों ज्यों मिथ्याकी वृद्धि होती है, त्यों त्यों अधर्मकी भी वृद्धि होती है। परन्तु जो शक्ति सृष्टि-स्थिति-लयका धारक है, उसी शक्तिके अतीत पदमें, जहां सृष्टि-स्थिति-लय क्रिया नहीं है, जो नित्यधाम है, जहाँ अवलम्बन करके रहनेका कुछ नहीं है, केवलमात्र निरालम्बाबस्था ही वर्तमान है, वही निवृत्तिमार्गका अधर्म है; इस अधर्मको ही कैवल्यस्थिति कहते हैं। अतएव, कर्मके द्वारा कर्मक्षय करते करते ज्यों ज्यों निरालम्बावस्थाकी वृद्धि होती है, त्यों त्यों अधर्मकी वृद्धि होती है (४र्थ अः ७म श्लोक देखो)। .
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy