SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ श्रीमद्भगवद्गीता व्याख्या। कूटस्थके ठीक केन्द्रमें (बीचमें ) दृष्टिपात करनेसे एक छिद्र लक्ष्य होता है, उसको भ्रामरी गुहा कहा जाता है। उस गुहाका मुख उज्वल कृष्णवर्ण है, परन्तु उसके चारो ओर उज्वल छटा विशिष्ट ज्योतिसे आवृत्त और पावरण तथा विक्षेप रूपा दो महाशक्तिसे रक्षित है। वहां दृष्टि देनेसे ही छिटकाय फेंक देता है, नहीं तो परदासे झांपना सरिस झांप देता है। ब्रह्मचर्य सात्त्विक आहार व्यवहार विषय-भोगाकांक्षा त्याग, दृढ़ सहिष्णुता, एवं प्राणक्रिया--- इन सकलका अभ्याससे शरोरमें शान्त तेजका वृद्धि होनेसे भ्रमध्यमें आकाशभेदी एक दृक्शक्ति उत्पन्न होता है, वह शक्ति आवरण तथा विक्षेप शक्तिसे आवृत विक्षिप्त होतो नहीं। तब गुहामुखमें दृष्टिपात करनेसे ही गुहा के मुख सुविस्तृत हो करके अभ्यन्तर दृष्टि गोचर होता है,-धर्मका तत्व भी जाना जाता है। इसलिये शास्त्र-वचन है कि "धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायो"। अब वो आवरण विक्षेप भेद होना ही है "बुद्धिभेद" * कारण यह है कि, बुद्धिक्षेत्रके ऊपर उठके बुद्धिके ऊचेमें स्थिर हो जानेसे ही ऐसा होता है। यह बुद्धि भेद अज्ञ तथा कम्मोसक्तोंको नहीं होती, क्योंकि, प्रथमतः अज्ञ ( मूर्ख) उसपर फिर आसक्ति रहनेसे विषयकी खिंचाई इतनी अधिक होती है कि, उस गुहाके निकट पहुँचना भी नहीं होता, विक्षेपको जय करना तो बहुत दूरकी बात है। इस कारण करके विद्वान मनुष्य युक्त हो गया है। साधक किस रीतिसे अपने चलेंगे, उसीका उपदेश प्रयोजन, वैसे करके दूसरेको चलायेंगे उसका उपदेश प्रयोजन हैं नहीं; इसलिये क्रियाके प्रति लक्ष्य रख करके इस श्लोकका-अज्ञ फर्मासक्त पुरुषोंके बुद्धि भेद जन्मता नहीं, इस कारण विद्वान युक्त ( अनासक्त ) होकरके सर्वकर्म समूह समाचरण पूर्वक योजना करेंगे इस प्रकार अर्थ धर लेकरके व्याख्या किया गया ।। २६ ।। * २य अः ५० श्लोकके 'बुद्धियुक्त' और इस श्लोकके 'बुद्धिभेद' कार्य्यतः एक ही है ॥ २६ ॥
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy