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________________ १५२ श्रीमद्भगवद्गीता उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्य्या कर्म चेदहम् । संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः॥२४॥ अन्वयः। चेत् ( यदि ) अहं कर्म न कुया , ( तहिं ) इमे लोकाः (भूरादयः) उत्सीदेयुः ( उत्सन्नाः भवेयुः ), अहं च संकरस्य ( सर्व भिलनस्य ) कर्ता स्याम् (भवेयम् ), इमाः प्रजाः ( प्रकृष्टं जायन्ते इति विभिन्नान्तःकरणवृत्तयः उपहन्याम् (नश्येयम् ) ॥ २४ ॥ अनुवाद। यदि मैं कर्म न करूं, तो ये सबलोग उत्सन्न होवेगा तथा मैं संकरका कर्ता होऊंगा, और ये सब प्रजा नष्ट हो जावेगी ॥ २४ ॥ व्याख्या। अतन्द्रित हो करके कर्मके अधिकार पार होनेसे"पृथ्वी शीर्णा जले मग्ना जलं मग्नं च तेजसि । तेजः वायौ वायुः व्योमिन *** ॥” इत्यादि लययोगमें तत्त्व समूह शीर्ण होके, एक और एकमें मिल जाते जाते उर्द्धस्तरमें उपनीत होता है, तब प्राकृतिक तत्व और आत्मतत्त्वका एकत्र मिलन रूप संकर उत्पन्न होता है;परस्पर विरुद्ध पदार्थों के एकत्रावस्थानको ही संकर कहते हैं। इस प्रकार संकर होनेसे प्रकृतिकी सृष्टिमुखी वृत्ति मिट जाके, ब्रह्म-मुखी वृत्ति होनेसे, प्रजा ( जो जन्म ले चुकी ) अर्थात् जिन समस्त वृत्तिसे सृष्टि-विस्तार होता है, वह सब नष्ट हो जाता है। (इस अवस्था लाभ होनेसे साधक प्रकृतिके ऊपर कत्त कर रहे हैं, सो अच्छी तरह अपने समझ सकते हैं, तब उनकी स्वामि उपाधि होती है। ॥२४॥ ... सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत । कुर्य्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षर्लोकसंग्रहम ॥ २५।। अन्वयः। हे भारत ! कर्मणि सक्ताः अधिद्वांसः ( अज्ञाः ) यथा कुर्वन्ति, लोकसंग्रहं चिकीषु: विद्वान् असक्तः ( सन् ) तथा कुर्य्यात् ॥ २५ ।। - अनुवाद । हे भारत ! अविद्वान लोग कर्ममें आसक्त होके जैसे कर्म करता रहता है, लोक संग्रह करणेच्छु विद्वान जन भी अनासक्त हो करके वैसेही करेंगे ॥२५॥
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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