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________________ गीताका अधिकार मात्र गीताका आश्रय करके ही वह ज्ञानविज्ञान वित् होके परम कारण में चित्तलय कर सकेंगे। इसलिये गीताका योग और विज्ञान विषय में कुछ आलोचना की जाती है गीता योगशास्त्र है। मानवकी चित्तवृत्ति का मनोवृत्ति समूह असंख्य हैं। असंख्य होने पर भी उनको पांच प्रकारकी अवस्थामें विभाग किया जा सकता है। चित्तके वह पाच प्रकार की अवस्था ये हैं, यथा,___(१) क्षिप्त। मनको अस्थिर और चंचल अवस्थाका नाम क्षिप्त अवस्था है। इस अवस्थामें मन एक न एक विषय ग्रहण और त्याग करनेमें ही व्यस्त रहता है, “स्थिर नहीं होता। यही इसका स्वभाव है। - (२) मूढ़। जब मन काम, क्रोध, निद्रा, तन्द्रा, आलस्य प्रभृति द्वारा अभिभूत होकर कर्तव्याकर्तव्य ज्ञानशून्य होता है तबहीं मनकी मूढ़ अवस्था है। . . । (३) विक्षिप्त। किसी एक सुखके विषय पानेसे मन उसीमें आकृष्ट होता है और उसोको अवलम्बन करके क्षणकालके लिये स्थिर होता है। परन्तु स्वभाव दोषके वश उसी दम पुनराय अस्थिर और चञ्चल होता है। इस क्षणविराम विशिष्ट चञ्चल अवस्थाका नाम ही विक्षिप्त अवस्था है। (४) एकाग्र। जब मन अन्तरके अथवा बाहरके किसी एक लक्ष्य को अवलम्बन करके, ( रजोका चंचलता और तमोका अभिभूतावस्था वा निश्चष्टता त्याग पूर्वक ) केवलमात्र सत्त्वके सहारेसे उसी लक्ष्य में स्थिर होकर उसीका स्वरूप प्रकाश करता रहता है, दूसरा कुछ अवलम्बन नहीं करता, तबही मनको एकाप्र अवस्था है। (५) निरुद्ध। और जब मन इस प्रकार एकाप्र होकर अपनेको भी भूल जाता है, कोई वृत्ति वा क्रिया रहती नहीं, अबलम्बन भो
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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