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________________ १२२ श्रीमद्भगवद्गीता • विहाय कामान् यः सर्वान् पुमाश्चरति निस्पृहः।। निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति ॥ १ ॥ अन्वयः। यः पुमान् सर्वान् कामान् विहाय निस्पृहः निर्ममः निरहंकारः ( सन् ) चरति, सः शान्ति अधिगच्छति ( प्राप्नोति ) ॥ १॥ अनुवाद। जो पुरुष समुदय कामना परित्याग करके निस्पृह, निर्मम, था निरहंकार होके विचरण करते हैं, शान्ति वही पाते हैं ॥ १॥ व्याख्या। भोगके विषयका नाम काम है ; (आकांक्षाभी काम )। मनुष्य मात्रके सन्मुख में भोगका विषय है। फिर जो साधक साधनामें थोड़ासा आगे पहुँचते हैं, उन सबके भोगके विषय (विभूति ) की प्राप्ति होती है। उन सब विषय-भोगमें मन देनेसे अर्थात् “कामकामी” होनेसे, बन्धनमें पड़ना होता है, उन्नति नहीं होती। जो पुरुप, सकल प्रकार भोगके विषयको झाडू मारके निकाल देके निस्पृह अर्थात् आकांक्षारहित होते हैं, अर्थात् "आत्मनो न तथा भिन्नं विश्वमात्मविनिर्गतं" इस प्रकार विचार-अनुष्ठानमें "सर्व ब्रह्ममयं” जान करके ममता-विहीन होते हैं, और अन्त में (सर्वशेषमें) "सोह” ज्ञानसे मतवाला हो करके, ममत्वका नाश करके अहंकारविहीन हो करके चरण करते हैं ; वही नित्यानन्द शान्ति लाभ करते हैं। (यह अवस्थाही कर्मका चरम फल-सिद्धावस्था है)॥७१ ॥ एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुमति । स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥७२॥ अन्वयः। हे पार्थ । एषा ब्राह्मो स्थितिः, एनां प्राप्य ( पुमान् ) न विमुह्यति (संसारमोहं न प्राप्नोति ), अस्या स्थित्वा अपि अन्तकाले (मृत्युसमये) ब्रह्मनिर्षाणं (ब्रह्मणि लयं ) मृच्छति ( प्राप्नोति ) ॥ ७२ ॥ अनुवाद । यही ब्राह्मोस्थिति है। इस स्थितिको प्राप्त होनेसे विमोहित होना नहीं पड़ता, इसमें रह करके भी अन्तकाल में ब्रह्मनिर्वाण मिल जाता है ।। ७२॥
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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