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________________ श्रीमद्भगवद्गीता युक्त होते हैं। यदि उस अवस्थामें मत्पर न होकर प्रकृति-पर हो जावें तो, इन्द्रियगण बलपूर्वक मनको वश करेगेही; किन्तु मत्पर होनेसे मनके ऊपर उन सबकी ओर कोई शक्ति रहती नहीं। इसीलिये कहा हुआ है कि, जिनकी इन्द्रियां वशमें आई हैं, उनही की प्रज्ञा प्रतिष्ठिता है ॥ ६०॥ ६१ ॥ ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस्तेषूपजायते । संगात् संजायते कामः कामात् क्रोधोऽभिजायते ॥६२॥ . क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाबुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ॥६३॥ अन्वयः। विषयान् ध्यायतः पुंसः तेषु संगः उपजायते, संगात् कामः संजायते, कामात् क्रोधः अभिजायते, क्रोधात् सम्मोहः भवति, सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः (भवति), स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः ( भवति ) बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ॥६॥६॥ अनुवादविषय का ध्यान करनेसे पुरुषका उसी विषयमें आसकि उत्पन्न होती है, आसक्तिसे काम तथा कामसे क्रोधोत्पन्न होता है, क्रोधसे सम्मोह होता है। मोहसे स्मृतिविलोप, स्मृतिविलोपसे बुद्धिनाश तथा बुद्धिनाशसे प्राणनाश (मृत्यु) होता है ।। ६२ ।। ६३॥ .. व्याख्या। इन्द्रिय संयत ही करो, और चाहे जो कुछ करो, यदि मनको मत्पर न करके विषय पर करो * अर्थात् शब्द-स्पर्शादि विषय अवलम्बन करो, तो मन अपने स्वभाव-वृत्ति द्वारा, जलमें दूध सरिस विषयके साथ मिलेगा ( किन्तु मत्पर होनेसे मन जलमें माखन सरिस विषयके साथ मिल नहीं सकता); उस हेल-मेल रूप संगसे काम अर्थात् प्राप्तिकी इच्छा बलवती होती है। यह इच्छा रूप आशा मायाविनी-वहन करके ले जा नहीं सकते इतना अर्थ पाये हो, * परवर्ती श्लोक देखो। इन्द्रिय-संयम विना मत्पर होना होता नहीं; तथा इन्द्रिय-संयम करके मत्पर न होनेसे इन्द्रियों के वशमें पड़ना ही होता है ॥६०॥६१॥ • इसीको ही मिथ्याचार कहते हैं । ३य अः ६ष्ठ श्लोक ।। ६२ ।। ६३ ।।
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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