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________________ xxviii रघुवंशमहाकाव्य फलतः प्राचीन काल से ही रघुवंश पर लगभग ४० टीकाएँ उपलब्ध हैं। इनमें सर्वाधिक प्रचलित मल्लिनाथ की संजीवनी-टीका रही है। मल्लिनाथ ने प्रायः सभी काव्यों पर टीकाएं की हैं। उनकी टीकाओं की यह विशेषता रही है कि वे उतना ही लिखते हैं जितने में कवि का भाव समझ में आ सके । व्यर्थ का वितण्डा या शास्त्रार्थ के चक्कर में वे नहीं पड़ते। इसीलिये उनकी टीकात्रों का सबसे अधिक प्रचार हुआ। इसी संजीवनी-टीका के साथ इसी के आधार पर हिन्दी व संस्कृत में अपनी व्याख्या 'छात्रोपयोगिनी' लिखकर पण्डित श्री धारादत्त शास्त्री जी ने यह संस्करण प्रस्तुत किया है। इस समय केवल परीक्षा की दृष्टि से छिटपुट सर्गों पर कई विद्वानों ने टीकाएं की हैं। सम्पूर्ण रघुवंश पर इस प्रकार की टीका जो वास्तव में अपने नाम के अनुरूप छात्रों के लिये उपयोगिनी हो दूसरी नहीं है। हमें आशा है कि विद्वज्जन एवं छात्रगण इस व्याख्या से लाभान्वित होंगे। गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः। हसन्ति दुर्जनास्तत्र समाद्धति सज्जनाः॥ मकरसंक्रान्ति, २०४३ जनार्दन शास्त्री पाण्डेय
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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