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________________ उपोद्घात xxvii साम्राज्य अनेक टुकड़ों में बिखर गया । फलतः राघवों की अयोध्या, जिसपर सम्पूर्ण राष्ट्र को गर्व था, उजड़कर खंडहर हो गई। यद्यपि कुश ने पुनः अयोध्या को राजधानी बनाकर अपनी भूल सुधारी, किन्तु राजधानी उजड़ने से राष्ट्र को जो धक्का लगा उसे वह न संभाल सका। कालिदास ने, जीर्णवस्त्रोंवाली धूलिधूसरित अयोध्या का स्वप्न में कुश को दर्शन कराकर अपनी व्यथा सुनाने में जो अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है वह कोई सिद्धसरस्वतीक कवि ही कर सकता है । ___कुश के बाद कवि ने जिन २४ उत्तराधिकारियों का वर्णन किया है उनमें केवल कुश के पुत्र अतिथि को छोड़कर किसी के लिये भी २१४ श्लोकों से अधिक नहीं कहा है । अन्तिम शासक अग्निवर्ण ने तो राज्यभार मंत्रियों पर छोड़कर केवल विषय-वासना और कामुकता को जीवन अर्पण कर दिया। फलतः उसे राजयक्ष्मा ने घेर लिया और वह सिंहासन को सूना छोड़ चल बसा। इस प्रकार दिलीप की तपस्या, रघु के पराक्रम और राम के अलौकिक व्यक्तित्व से जो यशस्वी वंश दोपहर के सूर्य की भांति दशों दिशाओं में प्रखरता से तप रहा था वही ध्रुवसन्धि जैसे व्यसनी और अग्निवर्ण जैसे लम्पट उत्तराधिकारियों द्वारा विलुप्त हो गया। ___ कालिदास के इस महाकाव्य से बड़े-से-बड़ा शासक और प्रतापी विजेता भी शिक्षा ग्रहण कर सकता है। कवि ने इसके द्वारा यह अमर सन्देश दिया है कि तपस्या, वीरता, सेवाभाव और त्याग की नींव पर ही राजाओं या राजवंशों के महल टिक सकते हैं। प्रमाद, कायरता और लम्पटता के थपेड़ों को वे नहीं सह सकते; जर्जर होकर धराशायी हो जाते हैं । प्रस्तुत सस्करण ___ कालिदास के तीनों काव्य-कुमारसंभव, रघुवंश और मेघदूत-लघुत्रयी कहे जाते हैं । जब परीक्षाओं का प्रचलन नहीं था तब भी पूरे भारत में प्रत्येक संस्कृतभाषाध्यायी के लिये इन ग्रन्थों का अध्ययन अनिवार्य समझा जाता था। परीक्षा-प्रणाली चालू होने के बाद कोई भी संस्था ऐसी न मिलेगी जिसने अपने पाठ्य ग्रन्थों में इन काव्यों को, विशेषकर रघुवंश को, न रखा हो। कालिदास के काव्यों पर टीका करना विद्वान् लोग अपनी विद्वत्ता की कसौटी समझते थे।
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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