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________________ xviii रघुवंशमहाकाव्य भेजते हैं। इनकी रचनाओं में लताएँ प्रांसू गिराती हैं; पादप वस्त्राभूषण प्रदान करते हैं; नदियाँ विलासिनी नायिकाओं के हावभाव प्रदर्शित करती हैं; वायु के झोकों से फड़फड़ाते किसलय ताल देते हैं; भौंरे मधुर संगीत की तान छेड़ते हैं; चन्द्रमा किरणरूप अंगुलियों से रजनी-नायिका के बिखरे अन्धकाररूप केशों को हटाकर प्रदोषरूप मुख को चूमता है। हिमालय की गुफाओं में कामक्रीड़ा करते हुए किन्नरमिथुन के लिये बादल तिरस्करणी (परदे) का काम करते हैं; वर्षा से उद्वेलित ऋषिगण उन ऊपर को चोटियों में चले जाते हैं जहां से बरसनेवाले बादल बहुत नीचे दीखते हैं। इस प्रकार हिमालय के वर्णन, आश्रमों के वर्णन, ऋतुओं के वर्णन-यहाँ तक कि युद्ध या करुण विलाप के वर्णन में भी, ये प्रकृति का सजीव चित्रण करने में नहीं चूकते। पशुओं और पक्षियों के स्वभाव का यथार्थ चित्रण इनकी रचनाओं में सर्वत्र मिलता है। इतना सब होते हुए कालिदास ने प्रकृति के रमणीय, कोमल और मधुर पक्ष को ही ग्रहण किया है, भीषण या भद्दे पहलू को नहीं। इनके इस उत्कृष्ट गुण का अतिक्रमण तो क्या समता भी विश्व का कोई कवि आज तक नहीं कर सका। __ हमारी समझ से कालिदास का प्रकृति में मानवता का यह आरोप ही आधुनिक छायावाद का बीज कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी। प्रकृति की प्रत्येक अवस्था पर कवि की पैनी दृष्टि रहती है। वे बैठे हुए सारसों के लिये कहते हैं उपान्तवानीरवनोपगूढान्यालक्ष्य पारिप्लवसारसानि। दूरावतीर्णा पिबतीव खेदादमूनि पम्पासलिलानि दृष्टिः॥ (रघु० १३॥३०) तो उड़ते सारसों को भी नहीं छोड़ते-- ___ अमूविमानान्तरलम्बिनीनां श्रुत्वा स्वनं काञ्चनकिंकिणीनाम्। प्रत्युवजन्तीव खमुत्पतन्त्यो गोदावरी सारसपंक्तयस्त्वाम् ॥ (रघु० १३३३३) यथार्थता के साथ वर्ण्यमान विषय का एक मर्मस्पर्शी चित्र इनकी रचना में देखें कार्या सैकतलीनहंसमिथुना स्रोतोवहा मालिनी पादास्तामभितो निषण्णहरिणा गौरीगुरोः पावनाः।
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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