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________________ [ 55 ] किया जाता है। भाषणकर्ता जो भाषण करता है वही भाषण ग्रहण करके इलेक्ट्रो मेग्नेटिक वेव में परिवर्तित करके लाउडस्पीकर तक पहुँचा देता है और लाऊडस्पीकर उस इलेक्ट्रो मेगनेटिक वेव को परिवर्तित कर साउण्ड वेव रूप में परिवर्तित कर देता है । जिससे दूर दूरस्थ श्रोता लोग भी भाषण को स्पष्ट रूप से सुनने में समर्थ होते हैं। वस्तुतः भाषण विषय, भाषणकर्ताकाहोते हुए भी साधारण भाषा में साधारणतः लाऊडस्पीकर का शब्द है कहा जाता है। उसी प्रकार दिव्य ध्वनि वस्तुतः तीर्थकर से निर्धारित होती है। गणधर तथा मागध देवों के द्वारा योग्य रीति से जन-जन तक पहुँचाया जाता है। जिस प्रकार जल पाईप अथवा लाऊडस्पीकर के माध्यम से पानी तथा भाषण जन-जन तक पहुँचाने के कारण निर्मित वशात पानी को नल का पानी, भाषण को लाऊडस्पीकर का कहा जाता है उसी प्रकार दिव्य ध्वनि को देव पुनीता कहना नैमित्तिक व्यवहार मात्र है। मागध जाति के देव दिव्य ध्वनि को जन-जन तक पहुँचाने के कारण उनका उपकार स्वीकार करके उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करने के लिए भी देवकृत कहना युक्ति संगत है । उपरोक्त वर्णन प्राचीन आचार्यकृत कोई भी ग्रंथ में स्पष्ट वर्णन नहीं है परन्तु मैंने विषय को स्पष्टीकरण करने के लिए अपनी बुद्धि, तर्क से किया है। इसमें जो सत्यांश है उसको पाठकगण ग्रहण करके असत्यांश को मेरा अज्ञानता का कारण मानकर त्याग कर देवें। . दिव्य ध्वनि का महत्वः-महान आध्यात्मिक क्रांतिकारी संत कुन्दकुन्दाचार्य दिव्य ध्वनि का आलोकित अनुपम अद्वितीय महत्व बताते हुए अष्ट पाहुड में निम्नप्रकार वर्णन करते हैंजिणवयण मोसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमिदभूदं । जरमरण वाहि हरणं खयकरणं सव्वदुक्खाणं ॥17॥ अष्ट पाहुड सणयाहुड़ जिनेन्द्र भगवान के अनुपम बचन महान औषधि सदृश हैं। जिस प्रकार महौषधि सेवन से शारीरिक रोग नष्ट हो जाते हैं उसी प्रकार दिव्य ध्वनि रूपी महौषधि सेवन से मानसिकआध्यात्मिक एवं सांसारिक रोग नष्ट हो जाते हैं। विषय महाविष तुल्य है। विष वेदना दूर करने के लिये आयुर्वेद के अनुसार पहले विष रोगी को विरेचन औषधि देकर वांति कराते हैं, उसी प्रकार विषय सुख रूपी विष को वांति कराने के लिए जिनेन्द्र वचन महौषधि स्वरूप है, लोकोक्ति है अमृतपान करने से जीवन अजरामर हो जाता है । वस्तुतः दिध्यध्वनि ही वचनामृत है, इस वचनामृत को जो पान करता है वह जन्म, जरा, मरण एवं आदि व्याधि-उपाधि से रहित होकर शाश्वतिक अमृत तत्व (मोक्ष तत्व) को प्राप्त कर लेता है । सम्पूर्ण दुःखों का कारण अज्ञान, मोह, कुचारित्र है । दिव्यध्वनि के माध्यम से अज्ञान, मोह रूपी अंधकार नष्ट होने से जीव के अंतःकरण में ज्ञानरूपी ज्योति प्रज्जवलित हो जाती है जिससे अज्ञान आदि अंधकार नष्ट हो जाता है, आध्यात्मिक ज्योति से जीव यथार्थ सुखमार्ग को पहिचान कर तदनुकूल आचरण करता है, जिससे
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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