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________________ [ 54 ] उपरोक्त समस्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि वस्तुतः दिव्यध्वनि पूर्वोपार्जित सर्वश्रेष्ठ तीर्थङ्कर प्रकृति के उदय से तथा भव्यों के पुण्य उदय से तीर्थंकर के सर्वाङ्ग से ओंकार ध्वनि स्वरूप सर्व भावात्मक अनाक्षरात्मक (कोई निश्चित एक भाषा नहीं होने के कारण) खिरती हैं। परन्तु गणधर देव उस बीजात्मक, सूत्रात्मक उपदेश को ग्रंथ रूप से रचना करते हैं पूर्वाचार्य ने कहा भी है "अरिहंत भासियत्थं गणहर देविहं गंथियं सम्मं ।' अरिहंत भगवान के द्वारा प्रतिपादित अर्थ को गणधर देव सम्यक् रूप से ग्रंथित करते हैं अर्थात् तीर्थङ्कर भावश्रुत के कर्ता हैं एवं गणधर द्रव्यश्रुत के कर्ता हैं। तार्किक चूडामणि महान् दार्शनिक भगवत् वीरसेन स्वामी विश्व के अनुपम साहित्य धवला में निम्न प्रकार वर्णन करते हैं पुणो तेणिदभूदिणा भाव-सुद-पज्जय-परिणदेण बारहंगाणं चोद्दसपुव्वाणं च मंधाणमेक्केण चेव मुहुत्ते ण कमेण रयना कदा। तदो भाव-सुदस्य अत्थ-पदाणं च तित्थयरो कत्ता । तित्थयरादो सुद-पज्जाएण गोदमो परिणदो त्ति दव्व-सुदस्य गोदमो कत्ता । छक्खंडागमे जीवट्ठाणं पृ-65 __ अनन्तर भाव श्रुतरूप पर्याय से परिणत उस इन्द्रभूति ने 12 अंग और 14 पूर्व रूप ग्रंथों की एक ही मुहूर्त में क्रम से रचना की । अतः भावश्रुत और अर्थपदों के कर्ता तीर्थंकर हैं । तथा तीर्थंकर के निमित्त से गौतम गणधर श्रुतपर्याय से परिणत हुए इसलिये द्रव्यश्रुत के कर्ता गौतम गणधर हैं । इस तरह गौतम गणधर से ग्रंथ रचना हुई। जिस प्रकार जलवृष्टि होने के पश्चात् वह जल नदी में श्रोत रूप में बहकर जाता है उस जल को जीवनोपयोगी बनाने के लिए इंजिनियर नदी में डेम बांधकर पानी को संचित करते हैं उस पानी को बड़े-बड़े पानी पाइप के द्वारा वहन करके पानी टंकी में सञ्चित करते हैं । पुनः छोटे-छोटे नल द्वारा नगर, गली, घर आदि में पहुँचाते हैं। घर में जो पानी पहुँचता है उसको नल का पानी कहते हैं । वस्तुतः पानी नल का नहीं है नल का पानी जलकुंड से आया एवं जलकुंड का पानी नदी से आया और नदी का पानी वृष्टि से आया । अतः निश्चय से जिसको हम नल का पानी कहते वह पानी वृष्टि का है । इसी प्रकार दिव्य ध्वनि रूपी जल सर्वज्ञ भगवान से निर्झरित होता है उस महान श्रोत को साधारण जनोपयोगी बनाने के लिए गणधर रूपी इंजिनियर ग्रंथ (आगय) रूपी डेम (कृत्रिम जलाशय) में संचित करते हैं । जिस प्रकार संचित जल छोटे-छोटे पाइपों के माध्यम से घर-घर पहुँचाया जाता है। उसी प्रकार मगध जाति के देवों के माध्यम से उस पवित्र दिव्य ध्वनि रूपी जल को जन-जन तक पहुँचाया जाता है। जिस प्रकार एक भाषणकर्ता बहुजन के मध्य में भाषण करता है उस भाषण को सर्व श्रोताओं के समीप पहुँचाने के लिए माइक लाउडस्पीकर का प्रयोग
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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