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________________ [ 21 ] उस समय प्रजा का हर्ष बढ़ रहा था, देव आश्चर्य को प्राप्त हो रहे थे और कल्पवृक्ष ऊँचे से प्रफुल्लित फूल बरसा रहे थे । अनाहताः पृथुध्वाना दध्वनुदिविजानकाः । मदुः सुगन्धिः शिशिरो मरुन्मन्दं तदा ववौ ॥7॥ देवों के दुन्दुभिः बाजे बिना बजाये ही ऊँचा शब्द करते हुए बज रहे थे और कोमल शीतल तथा सुगन्धित वायु धीरे-धीरे बह रही थी। प्रचचाल मही तोषात् नृत्यन्तीव चलगिरिः। उदलो जलधिर्नूनमगमत् प्रमदं परम् ॥8॥ उस समय पहाड़ों को हिलाती हुई पृथ्वी भी हिलने लगी थी मानो संतोष से नृत्य ही कर रही हो और समुद्र भी लहरा रहा था मानो परम आनन्द को प्राप्त हुआ हो। प्रत्येक द्रव्य, क्षेत्र, काल भावों का परिणाम दूसरे द्रव्यों के ऊपर तथा परिसर के ऊपर भी पड़ता है । महत्त्वपूर्ण विशिष्ट द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों का परिणाम और भी अधिक प्रभावशाली होता है । जिस प्रकार एक सामान्य दीपक भी अपने परिसर को प्रभावित करता है । नक्षत्र, ग्रह, चन्द्र, सूर्य आदि अधिक वातावरण को प्रभावित करते हैं । उसी प्रकार पुण्य-शाली महामानव जगत् उद्धारक महापुरुषों के जन्म के समय में देव मनुष्य, पशु-पक्षी यहाँ तक कि प्रकृति भी अधिक प्रभावित हो जाती है। जैसे—सूर्य उदय से घनान्धकार का विलय होता है, कमल खिल जाते हैं, वस्तु स्पष्ट दिखाई देने लगती है एवं जीवन में नवीन चेतना, नवीन स्फूर्ति जाग्रत हो जाती है, उसी प्रकार तीर्थंकर के जन्म के समय में भी आकाश निर्मल हो जाता है, देश की सुखसमृद्धि-वैभव-आदि की वृद्धि होने लगती है, दुःखी प्रजा सुखी हो जाती है, रोगी स्वास्थ्य को प्राप्त करता है, अंधे को आँखों से दिखाई देने लगता है, वनस्पतियाँ पुष्प-फलों से लद जाती हैं। एक क्षण के लिए तीन लोक में एक सुख-शान्तिमय वातावरण फैल जाता है । यहाँ तक कि सम्पूर्ण रूप से दुःखित नारकी भी एक क्षण के लिए शान्ति प्राप्त करते हैं । जिस प्रकार तीर्थंकर के जन्मावसर पर विशेष घटना घटती है, उसी प्रकार कुछ अंश में बौद्ध धर्म में बुद्ध के जन्म के समय में तथा अन्यान्य धर्म में अपने-अपने धर्म प्रचारक पैगम्बर धर्मदूत आदि के जन्म के समय में भी घटती है ऐसा स्वयं के धर्म ग्रन्थों में पाया जाता है। तीर्थंकरों के जन्म के 10 अतिशय णिस्सेदत्तं णिम्मल गत्तत्तं दुद्धधवलरुहिरतं । आदिमसंहडणतं, समचउरस्संग संठाणं ॥905॥ ति०प०अ०4 पृ० 278 अणुवमरुवत्तं णवचंपयवर सुरहिगंध धारितं । अठ्ठत्तर वरलक्खण सहस्स धरणं अणंतवल विरियं ॥906॥
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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