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________________ [ 20 ] माता ने जो 16 स्वप्न देखे, वह स्वप्न, तीर्थंकर भगवान के आगमन की शुभ सूचना थी। महापुरुष के गर्भ में आने के पहले माता शुभ स्वप्न देखती है । पापी जीव के गर्भ में आने के पहले माता अशुभ स्वप्न देखती है। स्वप्न दर्शन के अनन्तर जगतुद्धारक भावी तीर्थंकर भगवान गर्भ में अवतरित हो गये । _ जिस प्रकार धनिक लोग अपनी अमूल्य विधि की सुरक्षा करते हैं उसी प्रकार तीन लोक की निधि गर्भस्थ तीर्थंकर कुमार की सुरक्षा के लिये माता-पिता पुरजन के साथ-साथ स्वर्ग के देव-देवियाँ भी तत्पर रहने लगे। जन्म कल्याणकअथातो नवमासा नामत्यये सुषुवे विभुम् । देवी देवीभिरक्ताभिर्यथास्वं परिवारिता ॥1॥ आदि पुराण पर्व 13॥ अथानन्तर, ऊपर कही हुई श्री, ह्री आदि देवियाँ जिसकी सेवा करने के लिये सदा समीप में विद्यमान रहती हैं, ऐसी माता मरुदेवी ने नव महीने व्यतीत होने पर भगवान् वृषभदेव को उत्पन्न किया। प्राचीव बन्धुमब्जानां सा लेभे भास्वरं सुतम् । चैत्रे मास्यसिते पक्षे नवम्यामुदये खेः ॥2॥ आदि पुराण विश्वे ब्रह्म महायोगे जगतामेक बल्लभम् । भासमानं त्रिभिर्बोधैः शिशुमप्य शिशुं गुणैः ॥3॥ जिस प्रकार प्रातः काल के समय पूर्व दिशा कमलों को विकसित करने वाले प्रकाशमान सूर्य को प्राप्त करती है उसी प्रकार माया देवी भी चैत्र कृष्ण नवमी के दिन सूर्योदय के समय उत्तराषाढ़ नक्षत्र और ब्रह्म नामक महायोग में मति, श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानों से शोभायमान, बालक होने पर भी गुणों से वृद्ध तथा तीनों लोकों के एकमात्र स्वामी देदीप्यमान पुत्र को प्राप्त किया ॥2-3।। त्रिबोध किरणोद्भासि बालार्कोऽसौ स्फुरद्युतिः । नाभिराजोदयादिन्द्रावुदितो विबभौ विभु: ॥4॥ तीन ज्ञान रूपी किरणों से शोभायमान अतिशय कांति का धारक और नाभिराज रूपी उदयाचल से उदय को प्राप्त हुआ वह बालक रूपी सूर्य बहुत ही शोभायमान होता था। दिशः प्रसत्तिमासेदु रासीन्निर्मलमम्बरम् । गुणानामस्य वैमल्यमनुकत्तुंमिव प्रभो : ॥5॥ ___ उस समय समस्त दिशायें स्वच्छता को प्राप्त हुई थीं और आकाश निर्मल हो गया था। ऐसा मालूम होता था मानो 'भगवान् के गुणों की अनुकरण करने के लिये ही दिशायें और आकाश स्वच्छता को प्राप्त हुए हों। प्रज्ञानां ववृधे हर्षः सुरा विस्मयमाश्रयन् । अम्लानि कुसुमान्युच्चैर्मुमूचु : सुरभूरुहाः ॥6॥
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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