SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 2 धर्मक्रान्ति के अग्रदूत भोग-भूमि के उपरान्त भोग-भूमि एवं कर्मभूमि के संगम समय में अर्थात् आध्यात्मिक युग के ब्राह्म मुहूर्त में विलासपूर्ण मनुष्य कुल के संस्थापक हिताकांक्षी मार्ग-प्रदर्शक चौदह मनु महापुरुष हुए। उनके उपरान्त चौदहवें मनु नाभिराज के पुत्र धर्म के भावी नायक (कर्णधार) तीर्थंकर (1) आदिनाथ हुए । उनके बाद (2) अजितनाथ ( 3 ) संभवनाथ ( 4 ) अभिनन्दननाथ ( 5 ) सुमतिनाथ ( 6 ) पद्यप्रभनाथ ( 7 ) सुपार्श्वनाथ (8) चन्द्रप्रभनाथ ( 9 ) पुष्पदन्तनाथ ( 10 ) शीतलनाथ ( 11 ) श्रेयांसनाथ ( 12 ) वासुपूज्यनाथ (13) विमलनाथ ( 14 ) अनन्तनाथ ( 15 ) धर्मनाथ ( 16 ) शांतिनाथ (17) कुन्थुनाथ (18) अरहनाथ ( 19 ) मल्लिनाथ ( 20 ) मुनिसुव्रतनाथ ( 21 ) नमिनाथ ( 22 ) नेमिनाथ ( 23 ) पार्श्वनाथ ( 24 ) वर्द्धमान अर्थात् कुल 24 तीर्थंकर हुए। इस प्रकार इस युग के चतुर्थकाल में धर्म-तीर्थ के प्रवर्तक चौबीस तीर्थंकर हुए । विश्व अनादि अनन्त है । इसलिये काल भी अनादि-अनन्त गुणित है । सूक्ष्मरूप से ऋजुसूत्र नयापेक्षा, वर्तमान काल एक समय होते हुए भी स्थूल रूप से नैगमनयापेक्षा एक समय को आगे लेकर बीस कोड़ा कोड़ी सागर प्रमाण एक कल्पकाल होता है । उस कल्पकाल के दो भेद हैं । (1) उत्सर्पिणी (2) अवसर्पिणी । इन दोनों काल में भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में आध्यात्मिक युग में चौबीस चौबीस तीर्थंकर होते हैं । वर्तमान भरत क्षेत्र सम्बन्धी अवसर्पिणी काल में उपर्युक्त चौबीस तीर्थंकर हुए हैं । इसी प्रकार प्रत्येक उत्सर्पिणी अवसर्पिणी में भरत क्षेत्र सम्बन्धी चौबीस चौबीस तीर्थंकर होते हैं । अनादि काल से अभी तक अनन्त उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी व्यतीत हो गये हैं। आगे भी अनन्त उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी कालों का परिवर्तन होगा । इसलिये अनन्त काल में इस भरत क्षेत्र में अनन्त चौबीस तीर्थंकर हो गये और आगे भी अनन्त चौबीस तीर्थंकर होंगे। इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र में भी अनन्त चौबीस तीर्थंकर हो गये और आगे भी अनन्त चौबीस तीर्थंकर होंगे । असंख्यात द्वीप - समुद्र सम्बन्धी मध्यलोक में - ( 1 ) जम्बूद्वीप (2) धातकी खण्डद्वीप (3) अर्द्धपुष्कर द्वीप में मनुष्य निवास करते हैं। इन अढ़ाई (22) द्वीप में पाँच भरत एवं पांच ऐरावत क्षेत्र होते हैं । उपर्युक्त प्रत्येक क्षेत्र में प्रत्येक उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी में चौबीस चौबीस तीर्थंकर होते हैं । विदेह क्षेत्र में शाश्वतिक आध्यात्मिक युग ( कर्मयुग ) प्रवर्त्तमान होने के कारण वहाँ पर प्रत्येक समय में अनेक तीर्थंकर सतत धर्म प्रवर्त्तन करते रहते हैं । अढ़ाई (22) द्वीप में पाँच महाविदेह होते हैं । एक-एक विदेह में बत्तीस-बत्तीस भरत ऐरावत के कर्मभूमि होते हैं । समान विस्तृत
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy