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________________ [ 7 ] निक अतिरंजित विषय वासना अन्याय अत्याचार का पोषण करने वाले नोवेल, तिलस्मी आदि को पढ़कर कुपथगामी हो रहे हैं । यथार्थ से साहित्य उसे कहते हैं जिससे नैतिक सदाचार, विनय, अहिंसा सत्य-निष्ठा को पौष्टिक तत्त्व मिलें । परन्तु जिस साहित्य के माध्यम से कुशीलता, भ्रष्टाचार, उत्शृंखलता आदि की प्रेरणा मिलती है, वे सब कुशास्त्र एवं मानव समाज के लिए अहितकर, कलंक स्वरूप, विष मिश्रित भोजन के सदृश हैं । यदि प्यास लगी है तो प्यास शान्त करने वाले एवं पौष्टिक तत्त्व को देने वाले पानी का सेवन करना चाहिए । उसी प्रकार अध्ययन की प्यास है तो सुसाहित्य का आस्वादन लेना चाहिए परन्तु विष या मद्य से प्यास शान्त नहीं होती वरन् जीवन, स्वास्थ्य, नीति, धर्म नाश हो जायेगा उसी प्रकार अध्ययन की प्यास को बुझाने के लिये कुसाहित्य का सेवन नहीं करना चाहिए। उपर्युक्त दृष्टिकोण को रखकर इस प्रकरण में महापुरुषों के प्रेरणाप्रद जीवन की विशिष्ट घटनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं।
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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