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________________ [ xii ] सर्वोदय तीर्थ सर्वकालीन सर्वदेशीय होने के कारण यह तीर्थ कालजयी है। इस तीर्थं का शासन स्वर्ग, नरक, शाश्वतिक कर्मभूमि आदि त्रिलोक में, त्रिकाल में सतत प्रवाह मान रहता है। परिवर्तनशील कर्म-भूमि में इसका प्रभाव कुछ मन्द हो जाता है तो भी सम्पूर्णरूप से नष्ट नहीं हो जाता है । तव जिन ! शासन विभवो, जयति कलावपि गुणाऽनुशासन विभवः । दोषकशाऽसनविभवः स्तवन्ति, चैनं प्रभा कृशाऽऽसन विभवः ॥ हे वीर जिन ! आपका शासन-महात्म्य-आपके प्रवचन का यथावस्थित पदार्थों के प्रतिपादन स्वरूप घोर कलिकाल में भी जय को प्राप्त है। सर्वोत्कृष्ट रूप से प्रकृत रहा है उसके प्रभाव से गुणों में अनु-शासन-प्राप्त शिष्य जनों का भवविनष्ट हुआ है । संसार परिभ्रमण सदा के लिए छूटा है इतना ही नहीं, किन्तु जो दोषरूप चाबुकों का निराकरण करने में समर्थ है, चाबुकों की तरह पीड़ाकारी कामक्रोधादि दोषों को अपने पास फटकने नहीं देते और अपने ज्ञानादि तेज से जिन्होंने आसन-विभुओं को लोक के प्रसिद्ध नायकों को निस्तेज किया है वे गणधर देवादि महात्मा, भी आपके इस शासन के महात्म्य की स्तुति करते हैं। वर्तमान भौतिक वैज्ञानिक युग में भी सूर्वोदय तीर्थ की उपादेयता एवं आवश्यकता का अनुभव मानव आज कर रहा है। पूंजीपति एवं निर्धन व्यक्ति के बीच में जो गहरी एवं चौड़ी खाई दिनोंदिन बढ़ती जा रही है उसको कम एवं सम्पूर्ति करने के लिये अपरिग्रहवाद की आवश्यकता, साम्यवादी तथा सामाजवादी लोग स्पष्ट रूप से महसूस कर रहे हैं । राष्ट्र एवं अर्न्तराष्ट्रीय क्षेत्र में अपरिग्रह-वाद को व्यवहारिक रूप देने के लिये कार्लमार्क्स, लेनिन, महामा गांधी, वल्लभ भाई पटेल आदि महान् नेताओं ने अथक परिश्रम किये हैं । इसी प्रकार शांति पूर्ण सह अस्तित्व जीवन-यापन के लिये दूसरों के सत्यांश को स्वीकार करना एवं स्वयं के मिथ्या अंश का त्याग करने रूप सापेक्षवाद एवं अनेकान्त-सिद्धान्त को सर्व-जन स्वीकार कर रहे हैं। क्रूर हिंसा प्रक्रिया से मानव समाज के साथ-साथ प्रकृति को ध्वसं विध्वसं देखते हुए आज के संवेदनशील मानव अहिंसा को ही एक अद्वितीय रक्षक मानकर अहिंसा की शरण में जा रहे हैं । क्रूर हिंसा को अमानवीय कृत्य मानते हुए निरस्त्रीकरण करने की जोर-दार आवाज उठ रही है । इसी प्रकार शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक शांति के लिये एवं सुख शांति के लिये सर्वोदय की अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, अनेकान्त, सापेक्षवाद, संगठन आदि इस युग में भी सम-समायिक उपयोगी, आवश्यक अपरिहार्य सिद्धान्त हैं। "शान्तिमय धर्म क्रान्ति के अग्रदूत का सर्वोदय तीर्थ; मंगलमय, सम-समायिक, निष्कलंक, सर्वत्र, सर्वकाल, सर्वजीव हितकारी होने के कारण सर्व शोभा सम्पन्न सर्वभद्रमय है" ऐसा समन्त भद्रस्वामी ने कहा है:
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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