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________________ आप्तेनोच्छिन्न दोषेण सर्वज्ञेनागमेशिना । भवितव्यं नियोगेन नान्यथा ह्याप्तता भवेत् ॥ रत्मकरदण्ड श्री. In the nature of things the true God should be free from the faults and weaknesses of the lower nature; (he should be) the knower of all things and the revealer of Dharma; in no other woy Can divinity be Constituted. सच्चे सुख-शान्ति, क्रान्ति के उपदेशक (आप्त-नेता) को सम्पूर्ण अन्तरंगबहिरंग दोषों से पूर्ण रूप से रहित होना चाहिए। जगत् गुरु (आप्त) को सर्वज्ञ, सर्वदर्शी के साथ-साथ सर्व जीव हितकारी हितोपदेशी होना चाहिए। उपर्युक्त गुण सहित आप्त होते हैं। अन्यथा आप्त होने के लिए कोई भी योग्य नहीं हो सकता है। उपरोक्त गुणालंकृत महामानव ही स्व-पर-उपकार कर सकता है। वे महान् कारूणिक, सर्व जीव हितकारी, शान्तिमय-क्रान्ति के अग्रदूत दुःख संतप्त जीवों को अपनी क्रान्तिमय वाणी से सम्बोधन करके जाग्रत करते हैं। इसी प्रकार अद्वितीय क्रान्तिकारी महापुरुष व अद्वितीय क्रान्तिकारी मत का संक्षिप्त सारभित परिचय देते हुए तार्किक शिरोमणि समन्तभद्र स्वामी ने युक्त्यानुशासन में निम्न प्रकार कहा है दया-दम-त्याग-समाधि-निष्ठं नय-प्रमाण-प्रकृताऽऽञ्ज सार्थम । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवादै जिन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥6॥ हे वीर जिन ! आपका मत-अनेकान्तात्मक शासन-दया (अहिंसा), दम (संयम), त्याग (परिग्रह त्यजन) और समाधि (प्रशस्तध्यान) की निष्ठातत्परता को लिए हुए है-पूर्णतः अथवा देशत: प्राणी हिंसा से निवृति तथा परोपकार में प्रवृति रूप वह दयावत जिसमें असत्यादि से विरक्ति रूप सत्यव्रतादि का अन्तर्भाव (समावेश) है। मनोज्ञ और अमनोज्ञ इन्द्रिय-विषयों में राग-द्वेष की निवृति रूप संयय; बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रहों का स्वेच्छा से त्यजन अथवा दान और धर्म तथा शुक्ल ध्यान का अनुष्ठान; ये चारों उसके प्रधान लक्ष्य हैं। नयों तथा प्रमाणों के द्वारा सम्यक् वस्तु तत्व को बिल्कुल स्पष्ट करने वाला है और दूसरे सभी प्रवादों से अबाध्य है। दर्शन मोहोदय के वशीभूत हुए सर्वथा एकान्तवादियों के द्वारा प्रकल्पितबादों में से कोई भी वाद उसके विषय को वाधित अथवा दूषित करने के लिए समर्थ नहीं हैं 'यही सब उसकी विशेषता है और इसीलिए वह' अद्वितीय है-अकेला ही सर्वाधिनायक होने की क्षमता रखता है।
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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