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________________ प्राक्कथन विश्व के प्रत्येक जीव स्वभावतः, अनंत अक्षय ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य सम्पन्न प्रभु-विभु होने के कारण, कर्म-परतन्त्र में रहने वाले संसारी-दुःख आक्रान्त जीव भी सुखी, प्रभु-विभु होने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं। परन्तु यथार्थ मार्ग प्रदर्शनकारी के अभाव से दुःख आक्रान्त जीव; यथार्थ उत्क्रान्ति-शान्ति के मार्ग को जानेमाने बिना एवं उस मार्ग में चले बिना उसका प्रयत्न असम्यक्-विपरीत होता है । विपरीत मार्ग में सतत प्रयत्नशील होकर गति करने पर भी वह सुखेच्छु-मुमुक्षु जीव स्व-चिर पोषित लक्ष्य बिन्दु को प्राप्त नहीं कर पाता है । अपितु वह लक्ष्य बिन्दु से अधिक से अधिक दूर से अतिदूर होता जाता है । परन्तु जब उसको यथार्थ सुखशान्ति, क्रान्ति के पथिक का सुयोग्य मार्ग प्रदर्शन मिलता है, जिसने स्वयं अपना लक्ष्य बिन्दु प्राप्त कर लिया है, तब उसको दिशा बोध होता है, एवं यथा शक्ति विपरीत मार्ग का त्याग कर सत्य, सुख, शान्ति, क्रान्ति के मार्ग में प्रयाण करता है। अतएव योग्य क्रान्ति के लिए क्रान्तिकारी महा मानव की आवश्यकता प्रथम, प्रधान, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ एवं सर्वोपरि है । जैन दर्शनानुसार अनादिकालीन मिथ्याद्दष्टि जब तक सच्चे गुरु का उपदेश प्राप्त नहीं कर पाता है, तब तक वह सम्यग्दृष्टि नहीं हो सकता। क्योंकि अनादि काल से कर्म परतन्त्रता के कारण संसारी जीव ने सत्यस्वरूप से विमुख होकर असत्य, अधर्म दुःख में ही रचापचा एवं उसका अनुभव किया हैं । इसलिये उसको सत्य का परिज्ञान एवं सत्य प्राप्ति के लिए सत्य मार्ग का परिज्ञान गुरु से ही होता है । वे गुरु असाधारण, अलौकिक-प्रतिभा, ज्ञान, वैराग्य-शक्ति से सम्पन्न होते हैं। अखिल जीव के हितकारी शान्तिमय-क्रान्ति के अग्रदूत जगत्गुरु के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए पूर्वाचार्यों ने निम्न प्रकार कहा है मोक्ष मार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्वानां वन्दे तद्गुण लब्धये ॥ जो मोक्ष मार्ग के नेता हैं, कर्म रूपी पर्वत को भेदन करने वाले हैं, अखिल विश्व के सम्पूर्ण तत्व का परिज्ञान करने वाले हैं, उनके गुणों की प्राप्ति के लिए उनकी वन्दना करता हूँ। उपरोक्त वर्णन से यह सिद्ध होता है कि स्वातन्त्रय मार्ग के नेता बनने के लिए सम्पर्ण बन्धनों से रहित होना चाहिए और सम्पूर्ण विश्व के रहस्य का परिज्ञान करना चाहिए। महान् दार्शनिक, मनीषी समन्तभद्र स्वामी ने कहा भी है
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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