SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ NROERASESSIRSSC समझदार व्यक्ति सदा कारण को ही महत्त्व प्रदान करता है। कुत्ते को यदि कोई व्यक्ति पत्थर लगाता है तो वह पत्थर को ही काटता है, परन्तु पत्थर लगाने वाले की ओर उसकी दृष्टि नहीं जाती। जब सिंह को कोई व्यक्ति गोली लगता है तो वह गोली को नहीं काट कर गोली दागने वाले शिकारी पर क्रोधित होता है और अपना वैर निकालने के लिये वह शिकारी की ओर झपटता है। __इसी तरह से दुःखों से डरना अथवा घबराना श्वान-वृत्ति कहलाती है और दुःखों को लाने वाले पापों के प्रति क्रूर दृष्टि रखना और उन पापों को नष्ट करने के प्रयत्न करना सिंह वृत्ति है। श्वान-वृत्ति त्याज्य है। सिंह-वृत्ति उपादेय है। शास्त्राकारों का कथन है कि जो केवल दुःखों से ही इरते रहते हैं वे 'अनार्य' हैं। आर्य कदापि दुःखों से कहीं डरते। वे तो दुःखों के कारण भूत पाप से ही डरते हैं। इसलिये पूर्वोक्त बात की तरह आर्यावर्त के समस्त (उत्तम, मध्यम एवं अधम) मनुष्य पाप नहीं करते थे। वे सदा पाप-भीरु रहते थे। कैसे आदर्श नृप ! - कैसे ये आर्यावर्त के वे नृप? जो पुत्र के पापों का प्रायश्चित स्वयं करते थे। राजा कूलराज का 110 वर्ष की आयु में देहान्त होने के पश्चात् उनका पुत्र योगराज राजा हुआ। वह सचमुच योगी के समान उत्तम नृपथा। उनके क्षेमराज आदि चार पुत्र थे। एक दिन विदेश से कोई जहाज आया और लंगर डाले खड़ा था। क्षेमराज आदि चारों भाई वहाँ सायंकाल में भ्रमणार्थ गये, जहाँ उन्होंने उस जहाज में अनेक समृद्ध वस्तु देखीं। बहुमूल्य रत्न, कस्तूरी, तेजंतूरी आदि देखकर वेस्तब्ध रह गये। ___ यकायक उनके मस्तिष्क में विचार आया - "अपने देश की जनता के लिये, प्रजा के कल्याण के लिये यह समस्त सम्पत्ति लूट ली जाये तो क्या आपत्ति है?" ___ उन चारों का यह निश्चय था कि लूटी हुई समस्त सम्पत्ति का प्रजा हितार्थ ही उपयोग किया जाये, अपने स्वयं के सुखोपभोग के लिये नहीं। __उन्होंने सोचा - पिताजी का क्या होगा? उन्हें यदि अनीति के इस धन की प्राप्ति की समाचार सात होगा तो उन्हें कैसा अघात लगेगा? अत: उन्होंने पिताजी को इस योजना के विषय में पूर्व से ही सूचित करने का निर्णय किया। जब चारों पुत्रों ने सम्मिलित रूप से अपनी योजना से पिताजी को अवगत कराया तो Gene 67 90009Recem
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy