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________________ उनका चेहरा गम्भीर हो गया। उन्होंने कहा, "पुत्रो! सर्वोत्तम कार्य भी निम्न कोटि के मार्ग से कदापि नहीं होता। प्रजा और देश के कल्याण के लिये भी विदेशी जहाज को लूटना सर्वथा अनुचित है। अन्याय एवं अनीति के मार्ग से प्रजा को सुखी करने का विचार भी तुम जैसे आर्य पुत्रों के लिये शोभनीय नहीं है। तुम लागों का यह विचार जान कर मुझे अपार दुःख हुआ है।" पिताजी के वचन सुनकर चारों पुत्र चुपचाप वहाँ से बाहर चल दिये, परन्तु पिता की बात का उन पर तनिक भी प्रभाव नहीं हुआ और अर्द्धरात्रि के समय शस्त्रों से सुसज्जित होकर सैनिकों की सहायता से उन्होंने विदेशी जहाज पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने जहाज का समस्त सामान लूट लिया। प्रात: जब योगराज को अपने पुत्रों के इस दुष्कृत्य का पता लगा तब वे अत्यन्त आहत हुए और ऐसे पुत्रों के जन्मदाता पिता होने के कारण उन्होंने स्वयं को उक्त लूट का अपराधी माना। उसी दिन संध्या के समय चिता तैयार करा कर योगराज ने उसमें प्रवेश कर लिया। क्षेमराज आदि पुत्रों एवं सहस्रों नगर-निवासियों की करुण विनय को भी ठुकरा कर योगराज ने पुत्रों के पाप का प्रायश्चित किया। इस प्रकार के पाप-भीरु एवं न्याय-निष्ठ थे इस आर्यावर्त के राजा। आर्यावर्त के चोर भी पाप-भीरु थे अरे! राजा ही केवल पाप-भीरु नहीं थे, आर्यावर्त के चोर भी पाप से डरते थे। भावनगर राज्य के विरुद्ध बागी बने बागी जोगीदास खुमाण की यह बात है। किसी बात पर उसके साथ राज्य की ओर से अन्याय हुआ था। अत: उसने भावनगर के राजा से न्याय प्राप्त करने का भरसक प्रयत्न किया, परन्तु दुर्भाग्यवश उसे न्याय प्राप्त नहीं हो सका और वह राज्य के विरुद्ध बागी हो गया। जोगीदास में आर्यत्व का अमीर था, अत: उसने अपने साथियों के लिये एवं स्वयं के लिये निम्नलिखित नियम बनाये थे किसी अबला को हम कदापि नहीं लूटेंगे। किसी ब्राह्मण को हम नहीं सतायेंगे। किसी कृषक को हम तंग नहीं करेंगे। परस्त्री को माता और बहन के समान समझेंगे। इस कारण ही जोगीदास अपने एक हाथ में पिस्तोल और दूसरे हाथ में माला रखता था। पिस्तोल भावनगर के राजा के साथ शत्रुता का बदला लेने के लिये थी और माला उसके आत्मकल्याण की प्रतीक थी। ___एक रात्रि में वह अपने खेमे में (तम्बू में) जाग रहा था। उसके समस्त साथी गहरी नींद में सो रहे थे। जोगीदास माला फिरा रहा था और भगवान का स्मरण कर रहा था। उसने अचानक किसी PROGRESCO 6 9890909000
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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