SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस कारण जीवन-साथी रूपी निमित्त जितना उत्तम होगा, उतना ही उत्तम जीवन होने की संभावना अधिक रहती है। यदि जीवन-साथी निम्न कोटि का होता है तो वह धर्म में अन्तराय भूत होता है, वह जीवन को अधोगामी बनाने में महान् कारण बनता है। निमित्त का कैसा प्रबल प्रभव होता है? यह बात स्पष्टतया समझने के लिये एक सत्य घटना प्रस्तुत है। यूरोप के किसी देश के पति-पत्नी थे। वे रंग-रूप में अत्यन्त गौर वर्ण के थे। उनका जीवन अत्यन्त सुखमय था, परन्तु एक घटना ने उनके जीवन में अशान्ति की हवा भर दी जिससे उनका जीना दूभर हो गया। उस स्त्री के प्रथम बालक का जन्म हआ, तब वह हब्शी के समान श्याम वर्ण का प्रतीत होता था, जिससे उसके गौर वर्ण वाले पति के हृदय में शंका उत्पन्न हुई कि मेरी पत्नी सचमुच चरित्रहीन होनी चाहिये, उसका सम्बन्ध किसी हब्शी के साथ होना चाहिये, अन्यथा हब्शी जैसा कुरूप बालक उत्पन्न क्यों होता?' परन्तु वास्तव में तो वह स्त्री पूर्णत: निर्दोष थी। अत: पतिने जब उसके समक्ष अपना सन्देह प्रस्तुत किया तो उस स्त्री ने उसका पक्का विरोध किया और स्वयं निर्दोष होने के कारण उसने अपना पक्ष प्रबल रूप से प्रस्तुत किया। __ पति नहीं माना। वह इस बात का न्यायालय में ले गया। मुकदमा चला, जाँच हुई, परन्तु न्यायाधीश भी सत्य बात को ज्ञात नहीं कर पा रहा था। अत: वह भी अत्यन्त उलझन में था। अन्त में न्यायाधीश ने पति-पत्नी का शयनागार देखने की इच्छा प्रदर्शित की। वह उनके घर आया। शयनागार को देखते ही एक महत्वपूर्ण बात उसके ध्यान में आ गई। दूसरे दिन न्यायाधीश निर्णय सुनाने वाला था। न्यायालय में मनुष्यों की अपार भीड़ एकत्रित थी। न्यायाधीश ने निर्णय सुनाया कि, "गर्भाधान के समय इस स्त्री की दृष्टि उनके शयनागार में लगे पति के किसी हब्शी मित्र के चित्त की ओर थी। इस कारण इस स्त्री का बालक हब्शी के समान रंग-रूप वाला उत्पन्न हुआ है। यह स्त्री चरित्रहीन होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। अत: इसे निर्दोष घोषित की जाती है।" न्यायाधीश के बुद्धिमानी से पूर्ण निर्णय को सुनकर लोग स्तब्ध रह गये। इस घटना से हमें निमित्त के प्रबल प्रभाव का ज्ञान होता है। यदि अल्पकालीन निमित्त का भी इतना अधिक प्रभाव होता है तो सम्पूर्ण जीवन जिस व्यक्ति के साथ व्यतीत करना हो वह पति अथवा पत्नी रूपी निमित्त निम्न कोटि का हो तो जीवन कैसा नष्ट हो जायेगा? स्वयं का जीवन तो नष्ट होता ही है, परन्तु भावी सन्तानों पर भी इसका कितना विपरीत प्रभाव पड़ता है? BOBACCO 56 avanas
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy