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________________ अत: मेरी प्रतिष्ठा बचाने के लिये वह अपने आभूषण मुझे अवश्य दे देगी, क्योंकि वह अनेक बार कहती आपके अतिरिक्त संसार में मेरे लिये क्या है? आप ही मेरे सर्वस्व हैं। आपके लिये मैं अपने प्राण तक देने के लिये प्रस्तुत हूँ।" सरल प्रकृति वाले नाथालाल ने सरला के शब्द सत्य मान लिये थे, अत: वह प्रसन्न हो रहा था। घर पहुँच कर, वे तू मुझे दे दे क्योंकि अभी मेरी प्रतिष्ठा दाव पर है। कल पुन: धन प्राप्त होने पर मैं तुझे दो लाख के आभूषण बनवा कर दे दूंगा।" नाथालाल के मन में विश्वास था कि मेरे कहने पर सरला सरलता से तुरन्त मुझे आभूषण दे देगी, परन्तु उसका अनुमान मिथ्या सिद्ध हुआ। सरला को स्पष्ट कह दिया, "आभूषण कदापि दिये जाते होंगे। आप कुछ भी करें, परन्तु आभूषण तो मैं नहीं दूंगी।" सरला के उत्तर से नाथालाल को भारी आघात लगा। उसने सरला को स्मरण कराया, "तू तो मेरे लिये प्राण तक देने को तैयार थी, तो आज आभूषणों के लिये इनकार क्यों कर रही है?" परन्तु सरला तो टस से मस नहीं हुई। वह आभूषण देना ही नहीं चाहती थी। सेठ नाथालाल को अन्तिम उपाय भी विकल होता दिखाई देने पर उसने घर त्याग दिया। सरला जानती थी कि, "कहाँ जायेगा? अभी लौट आयेगा।" परन्तु वह गया सो गया। तीस वर्षों तक नाथालाल का कोई पता नहीं लगा, फिर भी नकटी सरला बन ठन कर बाहर निकलती और आभूषण भी पहनती। जब उसे कभी कोई कहता, "सरला! अब तुझे विधवा की तरह रहना चाहिये। यह सब तेरे लिये शोभनीय नहीं है।" तब सरला स्पष्ट कहती, "मेरे पति का शव लाओ तो ही मैं विधवा कहलाऊँगी।" नाथालाल सेठ का जीवन नष्ट किसने किया? उसकी पत्नी सरला ने। सरला जैसी नीच कूल की स्त्री के साथ विवाह करके नाथालाल ने गम्भीर भूल की थी और यही उसका जीवन नष्ट करने का मूल कारण था। हमारा जीवन अत्यन्त मूल्यवान् है। दुर्लभ मानव जीवन को सफल करने में अथवा नष्ट करने में 'जीवन-साथी' का प्रधान भाग होता है। अत: विवाह करने में जीवन-साथी का चुनाव करते समय अत्यन्त विवेक से काम लेना आवश्यक है। __ प्रश्न - हमारा जीवन साथी कैसा भी व्यक्ति हो परन्तु 'आप भला तो जग भला।' हम यदि अच्छे हों तो दूसरा व्यक्ति भी इच्छा होगा। हमें यदि जीवन में धर्माराधना करनी हो तो जीवनसाथी की अयोग्यता हमें रोक नहीं सकती। उत्तर - यह बात पूर्णत: सत्य नहीं है। अधिक उच्च कुल के जीवों की बात भिन्न है, जिन्हें निमित्त का प्रभाव नहीं होता हो। अन्यथा, सामान्यतया जीव निमित्तवासी होते हैं। उन्हें जैसा निमित्त मिलता है, वैसा उनका जीवन हो जाता है।
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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